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क्षमा
१. क्रोध चारित्रमोह की प्रकृति है उससे आत्मा के संयम गुण का घात होता है। क्रोध के अभाव में प्रकट होनेवाला क्षमा गुण संयम है, चारित्र है क्योंकि राग द्वेष के अभाव को ही चारित्र कहते हैं।
२. क्षमा सबसे उत्तम धर्म है जिसके क्षमा धर्म प्रकट हो जावेगा उसके मार्दव,आर्जब एवं शौच धर्म भी अवश्यमेव प्रकट हो जावेंगे। क्रोध के अभाव से आत्मा में शान्ति गुण प्रकट होता है। वैसे तो आत्मा में शान्ति सदा विद्यमान रहती है,क्योंकि वह आत्मा का गुण है, स्वभाव है, गुण गुणी से दूर कैसे हो सकता है ? परन्तु निमित्त मिलने पर वह कुछ समय के लिए तिरोहित हो जाता है। स्फटिक स्वभावतः स्वच्छ होता है पर उपाधि के संसर्ग से अन्यरूप हो जाता है । पर वह क्या उसका स्वभाव कहलाने लगेगा ? नहीं अग्नि का संसर्ग पाकर जल ऊष्ण हो जाता है पर वह उसका स्वभाव तो नहीं कहलाता। स्वभाव तो शीतलता ही है जहाँ अग्नि का सम्बन्ध दर हुआ कि फिर शीतल का शीतल हो जाता है।
३. क्रोध के निमित्त से आदमी पागल हो जाता है और इतना पागल कि अपने स्वरूप तक को भूल जाता है। वस्तु की यथार्थता उसकी दृष्टि से लुप हो जाती है। एक ने एक को
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