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वर्णा-वाणी
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तुम्हीं लोग तो अस्पृश्यों को जूठा खिलाते हो और यहाँ बड़ी बड़ी बातें बनाते हो । नियम कीजिये कि हम अस्पृश्यों को अपने जैसा भोजन देंगे। फिर देखिये आपके प्रति उनका हृदय कितना पवित्र और ईमानदार बनता हैं।
६. हृदय का असर हृदय पर पड़ता है। आप धोबी का कपड़ा उठाने में दोष समझते हैं परन्तु शरीर पर चर्वी से सने कपड़े बहुत शौक से धारण करते हैं क्या यही सद्धर्म है ?
७. जब आपके हृदय में अपनी ही संस्थाओं के प्रति सहयोग की पवित्र भावना नहीं, अपनी ही संस्थाओं का आप एकीकरण नहीं कर सकते फिर किस मुंह से कहते हैं कि हिन्दुस्तान पाकिस्तान एक हो जायँ ?
८. पवित्रता का सर्वश्रेष्ट साधक आप जिन मन्दिरों को कहते है उनमें किसी में लाखों की सम्पत्ति व्यर्थ पड़ी है तो किसी में पूजा के उपकरण भी साबित नहीं हैं ! एक मन्दिर में संगमर्मर के टाइल जड़ रहे हैं तो दूसरे मन्दिर की छचूत रही है ! क्या यही धर्म है ? यही पवित्रता है ?
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