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________________ पवित्रता १. पवित्रता वह गुण है जिसके प्राप्त होने पर मनुष्य संसार सागर से पार होता है । २. आप अपने हृदय को इतना पवित्र बनाइये कि उसमें प्राणीमात्र से शत्रुत्व की भावना दूर हो जाय । अब भी आपके हृदय में भय है कि अँग्रेज कोई षड्यन्त्र रचकर हमारी स्वतन्त्रता को पुनः हथयाने का प्रयत्न करेंगे ? परन्तु यह तभी सम्भव हो सकता है । जब आपका हृदय पवित्र रहे। यदि आपका हृदय पवित्र रहेगा तो आपकी स्वतन्त्रता छीनने की शक्ति किसी में नहीं । ३. हृदय की पवित्रता से क्रूर से क्रूर प्राणी अपनी दुष्टता छोड़ देते हैं । ४. पवित्रता के कारण एक गाँधी ने सारे भारतवर्ष को स्वतन्त्रता प्रदान की यदि भारतवर्ष में चार गाँधी बन जाएँ तो सारा संसार स्वतन्त्र हो जाय । मेरा विश्वास हैं कि हमारे नेताओं ने जिस पवित्र भावना से स्वराज प्राप्त किया है उसी पवित्र भावना से वे उसकी रक्षा भी कर सकेंगे । ५. स्पृश्यास्पृश्य (छूत अछूत) की चर्चा लोग करते हैं परन्तु धर्म कब कहता है कि तुम अस्पृश्यों को नीच समझो । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003997
Book TitleVarni Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1950
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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