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वर्णी-वाणी
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में दुख होता है और कहीं पर जिस पदार्थ से हमारा अनिष्ट होता है उसमें हमारी ममतलबुद्धि न होकर द्वेषबुद्धि होती है । अतः अनिष्ट पदार्थ के संयोग में दुःख और वियोग में सुख होता है। वास्तव में ये दोनों कल्पनाएँ अनात्मधर्म होने से अनुपादेय ही है।
६. जहाँ संयोग है वहाँ वियोग है और जहाँ वियोग है वहाँ संयोग है । अन्य की कथा छोड़िये संसार का जहाँ वियोग होता है वहाँ मोक्ष का संयोग होता है ।
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