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संयोग और वियोग
१. "वियोग से दुःख होता है" यह मैं नहीं मानता क्योंकि वियोग मोक्ष का कारण है जब कि परका संयोग दुःख का कारण है।
२. वियोग से कैवल्य होता है वही आत्मा की निजावस्था है।
३. यदि वियोग में अपने को नहीं पहिचाना तब संयोग में क्या पहिचान होगी।
४. जब हमको किसी इष्ट पदार्थ का वियोग हो जाता है तब हमारी आत्मा में अनवरत उस पदार्थ का स्मरण रहता है, साथ ही साथ उस पदार्थ में इष्टता मानने से मोहोदय होता है । यदि स्मरण काल में मोहोदय से कलुषता नहीं हुई तब कदापि दुःखी नहीं हो सकते । यही कारण है कि दुकान में क्षति होने से जैसा दुःख मालिक को होता है, वैसा मुनीम को नहीं। इसका कारण यह है कि मुनीम को मोहोदय कृत भाव नहीं है । इससे यह सिद्धान्त स्वीकार करना चाहिए कि पर पदार्थ का संयोग अथवा वियोग सुख र दुःख का जनक नहीं ।
५. संयोग और वियोग में सुख दुःख का कारण ममत्व भाव है । ममत्व भाव से ही परसंयोग में सुख और वियोग
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