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स्वोपकार और परोपकार
निश्चय नय से
१. परोपकारादि कोई वस्तु नहीं परन्तु हम लोग आत्मीय कषाय के वेग में परोपकार का बहाना करते हैं। परोपकार न कोई करता है न हो ही सकता है । मोही जीवों की कल्पना का जाल यह परोपकारादि कार्य है।
२. कोई भी शक्ति ऐसी नहीं जो किसी का अपकार और उपकार कर सके। उपकार और अपकार आत्मीय शुभाशुभ परिणामों से होता है । निमित्त की मुख्यता से परकृत व्यवहार होता है।
३. आज तक कोई भी व्यक्ति संसार में ऐसा नहीं हुआ जिसके द्वारा पर का उपकार हुआ हो। इस सम्बन्ध में जैसी यह श्रद्धा अतीत काल को है वैसी ही बर्तमान और भविष्य की है।
४. जिन्होंने जो भी परोपकार किया, उसका अर्थ यह है कि जो कुछ काम जीव करता है वह अपनी कषायजन्य पीड़ा के शमन के अर्थ करता है; फिर चाहे यह काम पर के उपकार का हो या अपकार का हो ।
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