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________________ दान ११३ से प्राणीकी क्षणिक तृति होती है किन्तु विद्यादानसे शास्वती तृति होती है। विद्याविलासियोंको जो एक अद्भुत मानसिक सुख होता है इन्द्रियोंके विलासियोंको वह अत्यन्त दुर्लभ है। क्योंकि वह सुख स्व-स्वभावोत्थ है जब कि इन्द्रियजन्य सुख पर जन्य है। अभयदान इसी तरह अभयदान भी बड़ा महत्वशाली दान है । इसका कारण यह है कि मनुष्यमात्रको ही नहीं, अपितु प्राणीमात्रको अपने शरीरसे प्रेम होता है। बाल हो अथवा युवा हो, आहास्वित्, वृद्ध हो, परन्तु मरना किसीको नष्ट नहीं । मरते हुए प्राणी की अभयदानसे रक्षा करना बड़े ही महत्व और शुभबन्धका कारण है। लौकिक दान ___ उक्त दानों के अतिरिक्त लौकिक दान भी बहुत महत्वपूर्ण है। जगत में जितने प्रकार के दुःख हैं उतने ही भेद लौकिक दान के हो सकते हैं। परन्तु मुख्यतया जिनकी आज आवश्यकता है वे इस प्रकार हैं १. बुभुक्षित प्राणी को भोजन देना । २. तृषित को पानी पिलाना । ३. वस्त्रहीन को वस्त्र देना। ४. जो देश व जातियाँ अनुचित पराधीनता के बन्धन में पड़कर परतन्त्र हो रही हैं उनको उस दुःख से मुक्त करना । ____५. जो पाप कर्म के तीव्र वेग से अनुचित मार्ग पर जा रहे हैं उन्हें सन्मार्ग पर लाने की चेष्टा करना। ६. रोगी की परिचर्या और चिकित्सा करना । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003997
Book TitleVarni Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1950
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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