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दान
१११ इनके प्रति हमारा कर्तव्य
१. जो धनवान् तथा सदाचारी हैं अर्थात् प्रथमश्रेणी के मनुष्य हैं उन्हें देखकर हमको प्रसन्न होना चाहिए । उनके प्रति ईषादि नहीं करना चाहिए।
२. द्वितीय श्रेणी के जो दरिद्र मनुष्य हैं उनके कष्टअपहरण के लिये यथाशक्ति दान देना चाहिए। तथा उनको सत्य सिद्धान्तों का अध्ययन कराके सन्मार्ग पर स्थिर करना
चाहिए। ___३. तृतीय श्रेणी के मनुष्य जो कुमार्ग के पथिक हो चुके हैं, तथा जिनकी अधम स्थिति हो चुकी है वे भी दया के पात्र हैं। उनको दुष्ट आदि शब्दों से व्यवहार कर छोड़ देने से ही काम नहीं चलेगा अपितु उन्हें भी सामयिक सत्शिक्षा और सदुपदेशों से सुमार्ग पर लाकर उत्थान पथ का पथिक बनाना चाहिये । दान के अपात्र
दान देते समय पात्र अपात्र का ध्यान अवश्य रख्नना चाहिए अन्यथा दान लेनेवाले की प्रवृत्ति पर दृष्टिपात न करने से दिया हुआ दान ऊसर भूमि में बोये गये बीज की तरह व्यर्थ ही जाता है।
जो विषयी हैं, लम्पटी है, नशेबाज हैं, जुआड़ी हैं, पर वञ्चक हैं उन्हें दान से एक तो उनके कुमार्ग की पुष्टि होती है, दूसरे दरिद्रों को वृद्धि और आलसी मनुष्यों की संख्या बढ़ती है और तीसरे अनर्थ परम्परा का बीजारोपण होता है। परन्तु यदि ऐसे मनुष्य बुभुक्षित या रोगी हों तो उन्हें ( दान दृष्टि से नहीं अपितु ) कृपादृष्टि से अन्न या औषधि दान देना वर्जित नहीं है । क्योंकि अनुकम्पा से दान देना प्राणीमात्र के लिए है।
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