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वर्णी-वाणी
मूर्ख दृष्टिगोचर होरहे हैं । बहुतसे सदाचारी और पापसे पराङ्मुख हैं, तब बहुत से असदाचारी और पापमें तन्मय हैं। जब कि कितने ही बलिष्ठताके मदमें उन्मत्त हैं, तब बहुतसे दुर्बलतासे खिन्न होकर दुखभार वहन कर रहे हैं । अतएव आवश्यकता इस बातकी है कि जिसको जिस वस्तुकी आवश्यकता हो उसकी पूर्ति कर परोपकार करना चाहिए । दान देनेने हेतु
स्थूलदृष्टिसे परके दुःखको दूर करनेकी इच्छा दान देने में मुख्य हेतु है परन्तु पृथक् पृथक् दातारों के भिन्न भिन्न पात्रों में दान देने के हेतुओं पर सूक्ष्मतम दृष्टिसे विचार करन पर मुख्य चार कारण दिखाई पड़ते हैं । १-कितने ही मनुष्य परका दुःख देख उन्हें अपनेसे जघन्य स्थिति में जानकर “दुखियोंकी सहायता करना हमारा कर्तव्य है" ऐसा विचारकर दान करते हैं। २-कितने ही मनुष्य दूसरोंके दुःख दूर करनेके लिये, परलोकमें सुख प्राप्ति ओर इस लोकमें प्रतिष्ठा (मान) के लिये दान करते हैं । ३-कुछ लोग अपने नामके लिये, कीर्ति पानेका लालच और जगतमें वाहवाहीके लिये अपने द्रव्यको परोपकारमें दान करते हैं । ४-और कितने ही मनुष्य त्यागको आत्मधर्म मानकर कर्तव्य बुद्धिसे दान देते हैं। दाताके भेद
मुख्यतया दाताके तीन भेद हैं १-उत्तम दाता २-मध्यम दाता और ३-जघन्य दाता। उत्तम दाता
जो मनुष्य निःस्वार्थ दान देते हैं, पराये दुःखको दूर करना ही जिनका कर्तव्य है, वे उत्तम दाता हैं । परोपकार करते
यसकतने ही इस ल नामके लयको
नाम
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