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भद्रता
१. भद्रता सुख की जननी है।
२. भद्रता वही प्रशंसनीय है जिसमें भिन्न-भिन्न अवगुणों की गन्ध न हो।
३. भद्रता स्वाभाविकी वस्तु है, उसमें बातों की सुन्दरता बाधक है।
४. भद्र परिणामों की साधक मृदुता है।
५. कभी-कभी मायावी भी भद्र के समान दिखाई देता है, पर इन दोनों में अन्तर है। मायावी कुटिल होता है और भद्र सरल होता है।
६. जिसके परिणामों में कुटिलता नहीं वह स्वभाव से हो भद्र होता है।
७. जो भद्र है वही धर्मोपदेश का अधिकारी माना गया है।
८. यह ठीक है कि भद्र को हर कोई ठग लेता है पर इससे उसकी कोई हानि नहीं होती। इससे तो उसके भद्रता गुण की सुगन्धि चारों ओर और अधिक फैल जाती हैं।
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