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वर्णी-वाणी
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४. यदि आप अपना हित चाहते हैं तो विकल्प न कीजिये।
५. जब तक आकुलता विहीन अनुभव न हो तब तक शान्ति नहीं। अतः इन वाह्य आलम्बनों को छोड़कर स्वावलम्बन द्वारा रागादिकों की क्षीणता करने का उपाय करना ही अपना ध्येय बनाओ और एकान्त में बैठकर उसी का मनन करो।
६. यदि निराकुलतापूर्वक एक दिन भी तात्विक विचार से अपने को भूषित कर लिया तो अपने ही में तीर्थ और तीर्थकर देखोगे।
७. यदि गृह छोड़ने से शांति मिले तब तो गृह छोड़ना सर्वथा उचित है। यदि इसके विपरीत आकुलता का सामना करना पड़े तब गृहत्याग से क्या लाभ ? चौबे से छब्बे होना अच्छा परन्तु दुबे होना तो ठीक नहीं।
८. कल्याण का मार्ग कोई क्या बतावेगा, अपनी आत्मा से पूछो । उत्तर यही मिलेगा-"जिन कार्यों के करने में आकुलता हो उन्हें कदापि न करो चाहे बह अशुभ हों या शुभ ।”
६. सुख का अर्थ "आत्मा में निराकुलता है।" जहाँ मूर्छा है वहाँ निराकुलता नहीं।
१०. विषयाभिलाषी ही आकुलता की जननी है। इसे छोड़ो, अपने आप निराकुल हो जाओगे।
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