________________
( ७ ) किया जिससे चालू परिस्थिति में कुछ सुधार भी हुआ। किन्तु यह अवस्था कब तक रहनेवाली थी। चालू जीवन के साथ जो नये-नये प्रश्न उठ खड़े हुए थे उनका भी समाधान आवश्यक था। उस समय के लोगों ने परिस्थिति सुलझाई तो पर स्थायी हल न निकल सका। आवश्यकता केवल जीवन यापन के नये-नये साधनों के ज्ञान कराने की नहीं थी किन्तु इसके साथ तृष्णा को कम करने के उपाय बतलाने की भी थी । यह ऐसी घड़ी थी जब योग्य नेतृत्व की ओर सबकी टकटकी लगी हुई थी।
अध्यात्मवाद को व्यावहारिक रूप देनेवाले भगबान ऋषभदेव ऐसे ही नाजुक समय में जन्मे थे। ये सब प्रकार की व्यवस्थाओं के आदि प्रवर्तक होने से आदिनाथ इस नाम द्वारा भी अभिहित किये गये थे। इन्होंने अपने जीवन के संशोधन द्वारा अध्यात्मवाद के आधारभूत निम्नलिखित सिद्धान्त निश्चित किये थे।
-विश्व मूलभूत अनेक तत्त्वों का समुदाय है। इसमें जड़ चेतन सभी प्रकार के तत्त्व मौजूद हैं।
२-ये सभी तत्त्व स्वतन्त्र और अपने में परिपूर्ण हैं ।
३-विश्व परिणमनशील होकर भी उसका परिणाम स्थायी आधारों पर अवलम्बित है। न तो नये तत्व का निर्माण होता है और न पुराने तत्त्व का ध्वंस ही। ___-वस्तु का परिणाम निमित्त सापेक्ष होकर भी नियत दिशा में होता है। निमित्त इतना बलवान् नहीं जो किसी पदार्थ के परिणमन की दिशा बदल सके या उसे अन्यथा परिणमा सके।
५-प्रत्येक व्यवस्था पदार्थों के परिणाम और उनके निमित्त नैमित्तिक सम्बन्धों में से फलित होनी चाहिये, क्योंकि जो व्यवस्था कल्पना द्वारा ऊपर से लादी जाती है उसके अच्छे परिणाम निष्पन्न नहीं होते।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org