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क्योंकि ईश्वरवाद की सब बुराइयाँ चौड़े में आ गई हैं और जनता उनसे पिण्ड छुड़ाने के पक्ष में होती जा रही है।
इसका परिणाम क्या होगा यह कह सकना तो कठिन है पर इतना निश्चित है कि रोटी और कपड़े का प्रश्न हल होने पर सम्भवतः मनुष्य का ध्यान पुनः अपने जीवन के संशोधन की ओर जाय और तब सम्भव है कि अध्यात्मवाद को अपनी प्राणप्रतिष्ठा करने का अवसर मिले। पर इसके लिये अध्यात्मवादियों को स्वयं सजग होने की आवश्यकता है। उन्हें अपनी बुराइयों की ओर देखना होगा। ईश्वरवादियों के सम्पर्क से जो बुराइयाँ उनमें घर कर गई हैं उनका तो उन्हें संशोधन करना ही होगा साथ ही अध्यात्मवाद के उन मूल सिद्धान्तों की ओर भी उन्हें ध्यान देना होगा जिनकी प्राणप्रतिष्ठा किये बिना संसार में चिरस्थायी शान्ति होना असम्भव है। .. ___ सुदूर पूर्व काल में इस जगती तल पर संघर्ष का कोई प्रश्न ही नहीं था। तब साधनों की विपुलता के सामने मनुष्यों की संख्या इतनी न्यून थी जिससे उन्हें जीवन में किसी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता था। उस समय प्रायः सभी प्राकृतिक साधनों पर भवलम्वित रहते थे । प्रकृति से उन्हें इतने विपुल साधन उपलब्ध थे जिनसे उनका अच्छी तरह काम चल जाता था। उन्हें जीवनोपयोगी साधनों को जुटाने के लिये अधिक श्रम नहीं करना पड़ता था। बिना संघर्ष के उनका जीवन यापन हो जाता था। तब उन्हें न तो पर लोक की चिन्ता थी और न इस लोक की। आवश्यकता कम थी और साधन विपुल इसलिये उनका जीवन सुखमय व्यतीत होता था। किन्तु धीरे-धीरे यह अवस्था बदलती गई । मनुष्य संख्या के सामने साधन न्यून पड़ने लगे। इससे मनुष्यों की चिन्ता बढ़ी और चिन्ता का स्थान संघर्ष ने लिया । यद्यपि उस समय इस चिन्ता से मुक्ति दिलानेवाले कुछ महानुभाव आगे आये जिन्होंने उस समय की परिस्थिति के अनुरूप मार्ग दर्शन
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