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वर्णा-वाणी
३१. अशान्ति का उदय जहाँ होता है और जिससे होता है उन दोनों की ओर दृष्टि दीजिए और अपने आत्मस्वरूप को पहिचानिये, सहज ही झंझट दूर करने की कुञ्जी मिल जायगी।
३२. जिस दिन तात्त्विक ज्ञान का उदय होगा; शान्ति का राज्य मिल जायगा। केवल पर पदार्थों के छोड़ने से शान्ति का मिलना अति कठिन है।
३३. भोजन की कथा से क्षुधानिवृत्ति का उपाय ज्ञात होगा, क्षुधा निवृत्ति नहीं । उसी प्रकार शान्ति के बाधक कारणों को हेय समझने से शान्ति का मार्ग दिखेगा, शान्ति नहीं मिल सकती । शान्ति तो तभी मिलेगी जब उन बाधक कारणों को हटाया जायगा।
३४. आत्मा स्वभाव से प्रशान्त नहीं, कर्म कलंक के समागम से अशान्त हो रहा है। कर्म कलङ्क के अभाव में स्वयं शान्त हो जाता है।
३५. अात्मा एक ऐसा पदार्थ है जो पर के सम्बन्ध से 'संसारी' और पर के सम्बन्ध के बिना मुक्त ऐसे दो प्रकार के भाव को प्राप्त हो जाता है । पर का सम्बन्ध करनेवाले और न करनेवाले हम ही हैं । अनादि काल से विभाव शाक्ति के विचित्र परिणमन से हम नाना पर्यायों में भ्रमण करते हुए स्वयं नाना प्रकार के दुःखों के पात्र हो रहे हैं । जिस समय हम ज्ञायकभाव में होनेवाले विकृत भाव की हेयता को जान कर उसे पृथक् करने का भाव करेंगे। उसी क्षण शान्ति के पथ पर पहुँच जावेंगे।
३६. पदार्थ को जानने का यही तो फल है कि आत्मा को शान्ति मिले । परन्तु वह शान्ति ज्ञान से नहीं मिलती, न इस प्रवृत्ति रूप व्रतादिकों से ही उसका अविर्भाव होता है, और न
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