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शान्तिः
२३. सद्भावना में ही शान्ति और सुख निहित है। ____२४. पुस्तकादि को पड़ने से क्या होता है, होने की प्रकृति तो आभ्यन्तर में है। शान्ति का मार्ग मूर्छा के अभाव में है सद्भाव में नहीं। .
२५. जहाँ शान्ति है वहाँ मूर्छा नहीं और जहाँ मूर्छा है वहाँ शान्ति नहीं। ___ २६. शान्ति अपनी परणतिविशेष है। उसके बाधक कारण जो हमने मान रखे हैं वे नहीं हैं किन्तु हम स्वयं ही अपनी विरुद्ध मान्यता द्वारा बाधक कारण बन रहे हैं। उस विरुद्ध भाव को मिटा दें तो स्वयमेव शान्ति का उदय हो जावेगा।
२७. समाज का कार्य करने में शान्ति का लाभ होना कठिन हैं । शान्ति तो एकान्तवास में है । आवश्यकता इस बात की है कि उपयोग अन्यत्र न जावे ।
२८. जो स्वयं अशान्त है वह अन्य को क्या शान्ति पहुँचायेगा।
२६. संसार में यदि शान्ति की अभिलाषा है तब इससे तटस्थ रहना चाहिये । गृहस्थावस्था में परिग्रह बिना शान्ति नहीं मिलती और आगम में परिग्रह को अशान्ति का कारण कहा है, यह विरोध कैसे मिटे ? तब आगम ही इसको कहता हैं कि न्याय पूर्वक परिग्रह का अर्जन दुःखदायी नहीं तथा उसमें
आसक्ति का न होना ही शान्ति का कारण है। जहाँ तक बने द्रव्य का सदुपयोग करो, विषयों में रत न होश्रो।
३०. धार्मिक चर्चा में समय व्यतीत करना शान्ति का परम साधक है।
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