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शान्ति
संकल्प कल्पतरु से कुछ आने जाने का है। सच्ची शांति प्राप्त करने के लिये रागादिक भावों को हटाना पड़ेगा क्योंकि शांति का वैभव रागादिक भावों के अभाव में ही निहित है ।
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३७. केवल वचनों की चतुरता से शान्तिलाभ चाहना मिश्री की कथा से मीठा स्वाद लेने जैसा प्रयास है ।
३८. अनेक महानुभावों ने बड़े बड़े तीर्थाटन किये, पञ्च कल्याणक प्रतिष्ठा कराई, मन्दिर निर्माण किये, षोडशकारण, दशलक्षण और अष्टाह्निका व्रत किये, बड़ी बड़ी आयोजना करके उन व्रतों के उद्यापन किये, परन्तु इन्हें शान्ति की गन्ध भी न मिली। अनेक महाशयों ने महान् महान् आर्ष ग्रन्थों का अध्ययन किया, प्रतिवाद मत्त मतङ्गजों का मान मर्दन किया, अपने पाण्डित्य के प्रताप से महापण्डितों की श्रेणी में नाम लिखाया, तो भी उनकी आत्मा में शान्तिसमुद्र की शीतलता ने स्पर्श नहीं किया । उसी प्रकार अनेक गृहस्थ गृहवास त्यागकर दिंगम्बरी दीक्षा के पात्र हुए तथा अध्ययन अध्यापन आचरणादि समस्त क्रिया कर तपस्वियों में श्रेष्ठ कहलाये जिनकी कायसौम्यता और वचन पटुता से अनेक महानुभाव संसार से मुक्त हो गये परन्तु उनके ऊपर शान्तिप्रिया मुक्तिलक्ष्मी का कटाक्षपात भी न हुआ । इससे सिद्ध है कि शान्ति का मार्ग न वचन में है न काय में है और न मनोव्यापार में है। वास्तव में वह अपूर्व रस केवल आत्मद्रव्य की सत्य भावना के उष्कर्ष ही से मिलता है ।
३६. सर्व सङ्गति को छोड़कर एक स्वात्मोन्नति करो, वही शान्ति की जड़ है ।
४०. ध्यान करते समय जितनी शान्ति रहेगी, उतनी ही जल्दी संसार का नाश होगा ।
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