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शान्ति
पूर्ण कर रहे हैं। शान्ति प्राप्त करने के लिये स्वात्मसम्बन्धी कलुषित भावों को दूर करो, यही अमोघ उपाय है ।
८. शान्ति का आस्वाद उन्हीं की आत्मा में आता है जो पर पदार्थ से विरक्त हैं।
६. शान्ति का मूल मन्त्र मूर्छा की निवृत्ति है । जितनी निवृत्ति होगी अनायास उतनी ही शान्ति मिलेगी। शान्ति के बाधक कारण हमारे ही कलुषित भाव हैं, संसार के पदार्थ उसके बाधक नहीं । तथा उनके त्याग देने से भी यदि अन्तरङ्ग मूर्छा को हीनता न हो तब शान्ति का लाभ नहीं हो सकता। अतः शान्ति के लिये निरन्तर अपनी कलुषता का अभाव करने में ही सचेष्ट रहना श्रेयस्कर है ।
१०. शान्ति का मूल कारण समता है।
११. वास्तव में शान्ति वह है जो प्रतिपक्षी कर्म के अभाव में होती है । और वही नित्य है ।
१२. प्रतिपक्षी कषाय के अभाव में जो शान्ति होती है वह प्रत्येक समय हर एक अवस्था में विद्यमान रहती है । यही कारण है कि असंयमी के ध्यानावस्था में भी शान्ति नहीं होती जो कि संयमी के भोजनादि के समय भी रहती है।
१३. जितना बाह्य परिग्रह घटता है, आत्मा में उतनी ही शान्ति आती है।
१४. शान्ति का उपाय अन्यत्र नहीं । अन्यत्र खोजना ही अशान्ति का उत्पादक और शान्ति के नाश कारण है।
१५. "आत्मा को शान्ति का उपाय मिले” इसके लिये हमें यत्न करने की आवश्यकता नहीं क्योंकि आत्मा शान्तिमय
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