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शान्ति
१. शान्ति का मूल कारण अशान्ति ही है । जब तक अशान्ति का परिचय हमको नहीं तभी तक हम इस दुःखमय संसार में भ्रमण कर रहे हैं। यदि आपको अशान्ति का अनुभव होने लगा तब समझिये कि आपका संसार तट निकट ही है । आभ्यन्तर शान्ति के लिये कषाय कृश करने की आव श्यकता है, उसी ओर हमारा लक्ष्य होना चाहिये ।
२.
३. शान्ति का स्थायी स्थान निर्मोही आत्मा है ।
४. संसार में वही आत्मा शान्तिका लाभ ले सकता है जिसने पर के द्वारा सुख दुःख होने को कल्पना को त्याग दिया है ।
५. अन्तरङ्ग शान्ति के आस्वाद में मूर्च्छा की न्यूनता ही प्रधान कारण है । और वह प्रायः उन्हीं जीवों के होती है जिनके स्वपरभेदज्ञान हो गया और जो निरन्तर पर्याय तथा पर्याय सम्बन्धी वस्तु जात में उदासीन रहते हैं ।
६. मिसरी का मधुर स्वाद केवल देखने से नहीं आ सकता, आत्मगत शान्ति का स्वाद वचन द्वारा नहीं आ सकता ।
७. शान्ति का मार्ग आकुलता के अभाव में है, वह निज में है, निजी है, निजाधीन है, परन्तु हम ऐसे पराधीन हो गये हैं कि उसको लौकिक पदार्थों में देखते हैं, उसकी उपासना में श्रायु
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