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सुख
५. व्यक्ति जितना अल्प परिग्रही होगा उतना ही अधिक सुखी होगा ।
६. सुख स्वकीय परणति के उदय में है, बाह्य वस्तुओं के ग्रहणादि व्यापार में नहीं ।
७. स्वकथा को छोड़ कथान्तर ( परकथा ) का त्याग करना आत्मीय सुख का सहज साधन है ।
5. पूज्यता का कारण वास्तविक गुण परणति है । जिसमें वह है वही श्लाध्य और सुख का पात्र है ।
६. पराधीनता का त्याग ही स्वाधीन सुख का मूल मन्त्र है । १०. सांसारिक पदार्थों से सुख की आशा छोड़ दो अपने आप सुखी हो जाओगे ।
११. सभी के लिये हितकारी प्रवृत्ति करो, कषायों के उदय आने पर देखने जानने का उद्यम करो, उपेक्षा दृष्टिको निरन्तर महत्त्व दो, प्रत्येक व्यक्ति को खुश करने की केष्टा न करो, इसी में आत्मगौरव और सुख है ।
१२. शान्ति के कारण उपस्थित होने पर शान्त मत बनो, अन्य लोगों की प्रवृत्तियाँ देखने की अपेक्षा अपनी प्रवृत्ति देखो, बातें बनाकर दूसरों को तथा अपने आप को मत ठगो, एक दिन अपने आप सुखी हो जाओगे ।
१३. आनन्द का समय तभी आवेगा जब कुटुम्बी जन तथा शत्रु और मित्रों में समता आ जायगी ।
१४. किसी की चिन्ता मत करो, सदा विशुद्धता से रहो, आपत्ति आवे उसे भी भोगो, सुख को सामग्री आवे तब उसे भी भोग लो यही सुख का सस्ता नुसखा
है ।
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