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मानवधर्म
१६. मनुष्य को यह उचित है कि वह अपना लक्ष्य स्थिर कर उसी के अनुकूल प्रवृत्ति करे। मेरी सम्मति से लक्ष्य वह होना चाहिये जिससे पर को पीड़ा न पहुँचे।
२०. मानव जाति सबसे उत्तम है, अतः उसका दुरुपयोग कर उसे संसार का कण्टक मत बनाओ। इतर जाति को कष्ट देकर मानव जाति को दानव कहलाने का अवसर मत दो।
२१. मनुष्यायु महान पुण्य का फल है। संयम का साधन इसी पर्याय में होता है। संयम निवृत्ति रूप है, और निवृत्ति का मुख्य साधन यही मानव शरीर है। .
२२. संसार की अनन्तानन्त जीव राशि में मनुष्य संख्या बहुत थोड़ी है। किन्तु यह अल्प होकर भी सभी जीवराशियों में प्रधान है। क्योंकि मनुष्य पर्याय से ही जीव निज शक्ति का विकाश कर संसार परम्परा को, अनादि कालीन मार्मिक दुःख सन्तति को समूल नष्ट कर अनन्त सुखों का आधार परमपद प्राप्त करता है। ___ २३. मनुष्य वही है जो पर की झंझटों से अपने को सुरक्षित रखता है।
२४. मनुष्य वही प्रशस्त है जो दृढ़ाध्यवसायी हो ।
२५. मनुष्य वही है जिसमें मनुष्यता का व्यवहार है। मनुष्यता वही है जिसके होने पर स्वपरभेद विज्ञान हो जावे। स्वपर भेद विज्ञान वही है जिसके सद्भाव में आत्मा सुमार्गगामी रहता है। सुमार्ग वही है जिससे आत्मपरणति निर्मल रहती है और आत्मनिर्मलता वही है जिससे मानव मानवता का पुजारी कहलाता है ।
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