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________________ वर्णी-वाणी ६४ ६. चञ्चलता मानवता का दूषण है। १०. मनुष्यजन्म प्राप्त करना सहज नहीं यदि इसकी सार्थकता चाहते हो तो अपने दैनिक कार्यों में पूजा और स्वाध्याय को महत्त्व अवश्य दो, परस्पर तत्त्व चर्चा करो, कलह छोड़ो और सहनशील बनो। ११. मानव पर्याय को सार्थकता इसी में है कि आत्मा निष्कपट रहे। - १२. संसार में वे ही मनुष्य जन्म को सफल बनाने की योग्यता के पात्र हैं. जो असारता में से सार वस्तु के पृथक् करने में प्रयत्नशील हैं। १३. जिसने इस अमूल्य मानवजीवन से स्वपर शान्ति का लाभ न लिया उसका जन्म अर्कतूल के सदृश किस काम का ? १४. मनुष्य वही है जो अपनी आत्मा को संसार दुःख से मुक्त करने की चेष्टा करे। संसार के दुःखहरण की इच्छा यदि अपने लक्ष्य को दृष्टि में रख कर नहीं हुई, तब वह मानव महापुरुषों को गणना में नहीं आता। १५. मनुष्य वही है जो अपने वचनों का पालन करे। १६. सबसे ममत्व त्याग कर अपना भविष्य निर्मल करो। १७. संसार स्नेहमय है। इस स्नेह पर जिसने बिजय पा ली वही मनुष्य है। १८. मनुष्य जन्म ही में आत्मज्ञान होता है, सो नहीं, चारों ही गति आत्मज्ञान में कारण है परन्तु संयम का पात्र यही मनुष्य जन्म है, अतः इसका लाभ तभी है जब इन परपदार्थों से ममता छोड़ी जावे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003997
Book TitleVarni Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1950
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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