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मानवधर्म
१. मानवता वह विशेष गुण है जिसके विना मानव मानव नहीं कहला सकता । मानवता उस व्यवहार का नाम है जिससे दूसरों को दुख न पहुँचे, उनका अहित न हो, एक दूसरे को देख कर क्रोध की भावना जागृत न हो । संक्षेप में सहृदतापूर्ण शिष्ट और मिष्ट व्यवहार का नाम मानवता है ।
२. मनुष्य वही है जो आत्मोद्धार में प्रयत्नशील हो ।
३. मनुष्यता वही आदरणीय होती है जिसमें शान्तिमार्ग की अवहेलना न हो ।
४. मनुष्य का सबसे बड़ा गुण सदाचारता और विश्वासपात्रता है ।
५. मनुष्य वही है जो अपनी प्रवृत्ति को निर्मल करता है ।
६. प्रत्येक वस्तु सदुपयोग से ही लाभदायक होती है । यदि मनुष्य पर्याय का सदुपयोग किया जावे तो देवों को भी वह सुख नहीं जो मनुष्य प्राप्त कर सकता है ।
७. आत्मगौरव इसी में है कि विषयों की तृष्णा से बचा जाये, मानवता का मूल्य पहिचाना जाए।
८. वह मनुष्य मनुष्य नहीं जो नोरोग होने पर भी आत्म कल्याण से विमुख रहे ।
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