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आत्म-समालोचना
१. अपने आप की समालोचना संसार बन्धन से मुक्ति का प्रधान कारण है ।
२. आत्मगत दोषों को पृथक करने की चेष्टा ही श्रेयस्करी है । अन्य की समालोचना केवल पर्यवसान में दुःसंस्कार का हो हेतु है ।
३. हम लोगों ने परपदार्थ की समालोचना में अपना हित समझ रक्खा है । परपदार्थ की अपेक्षा जो निज की समालोचना करते हैं वे ही परमपद के भागी होते हैं ।
४. दूसरे की आलोचना करना सरल है किन्तु अपनी त्रुटि देखना विवेकी मनुष्य का कर्त्तव्य है ।
५. पर की समालोचना से आत्महित होना दुर्लभ है ।
६. जो अपनी समालोचना से नहीं घबड़ाते, अन्त में वे ही विजयी होते हैं।
७. दूसरे के द्वारा की गई समालोचना को धैर्यपूर्वक सुनने की आदत डालो और उससे लाभ उठाओ ।
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