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चित्त की एकाग्रता १. चित वृत्ति को शान्त और एकाग्र करना ही परमपद पाने का उपाय है। . .
२. चित्तवृत्ति की स्थिरता परमतत्त्व जानने में सहायक है । परमतत्त्व का जानना और परमतत्त्व रूप होना दोनों भिन्न हैं, जानना कार्य क्षपोपशम से होता है और स्थिरता मोह की कृशता से होती है।
३. चित्त को चञ्चलता मोक्षमार्ग में बाधक और स्थिरता मोक्षमार्ग में साधक है।
४. चित्त की चञ्चलता से कार्यसिद्धि न कभी हुई, न हो सकती है।
५. चित्तवृत्ति को सब झंझटों से दूर कर उसे आत्मोन्मुख करने से ही कल्याण होगा।
६. चित्तवृत्ति निरोध का अर्थ विषयान्तर से चित्त हटा कर एक विषय में लगाना है और उसमें कषाय की कलुषता न होने देना है। क्योंकि कलुषता ही बन्ध की जननी है।
७. स्थिर भाव ही कार्य में सहायक होता है अतः जो कार्य करना इष्ट हो उसे दृढ़ अध्यवसाय से करने की चेष्टा करो।
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