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३२ : अनेकान्त और स्याद्वाद पद्धतिके अभ्यासियोंके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इसके स्याद्वादसे सर्व सत्य विचारोंका द्वार खुल जाता है।" डा० थामस
"न्यायशास्त्रमें जैन न्यायका स्थान बहुत ऊँचा है । स्याद्वादका स्थान बड़ा गम्भीर है। वह वस्तुओंकी भिन्न-भिन्न परिस्थितियों पर अच्छा प्रकाश डालता है।" महावीरप्रसादजी द्विवेदी__ "प्राचीन ढर्रेके हिन्दू धर्मावलम्बी बड़े-बड़े शास्त्री अभी तक यह नहीं जानते कि जैनियोंका स्याद्वाद किस चिडियाका नाम है।" महात्मा गान्धी____ "जिसप्रकार स्याद्वादको मैं जानता हूँ उसीप्रकार मानता हूँ। मुझे यह अनेकान्त बड़ा प्रिय है।"
स्याद्वादः सत्यलाञ्छनः । जैनं जयतु शासनम् । ... जैनेन्द्रं धर्मचक्र प्रभवतु सततं सर्वसौख्यप्रदायि ॥
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