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२४ : अनेकान्त और स्याद्वाद
एकेनाकर्षयन्ती इलथयन्ती वस्तुतत्त्वमितरेण । अन्तेन जयति जैनी नीतिर्मन्थाननेत्रमिव गोपी ॥ - पुरुषार्थसिद्धि० २२५
विश्वके प्रत्येक तत्त्वपर स्याद्वादमुद्रा अंकित है । दीपकसे लेकर आकाश पर्यन्तं छोटे-से-छोटा और बड़े-से-बड़ा प्रत्येक पदार्थं स्याद्वादमुद्रासे मुक्त नहीं है । कहा भी है
आदीपमाव्योम समस्वभावं स्याद्वादमुद्रानतिभेदि वस्तु ।
-स्या० म० ५
समन्वयका मार्ग स्याद्वाद
स्याद्वाद विभिन्न दृष्टिकोणों ( various points of views ) का समन्वय हमारे सामने उपस्थित करता है । वह अपने-अपने दृष्टिकोणके अनुसार वस्तुके स्वरूपको मानकर परस्परमें विवाद करनेवाले लोगोंमें समझौता कराने में समर्थ ( Compromising ) है । आज संसार में सर्वत्र त्राहि-त्राहिकी पुकार सुनाई पड़ती है । अशान्तिसे त्रस्त मानव शान्तिकी अभिलाषा करते हैं लेकिन उनको पूर्ण शान्ति नहीं मिलती । शान्तिका यथार्थ उपाय जाने बिना उनको शान्ति मिल भी कैसे सकती है । शान्तिका उपाय है विभिन्न दृष्टिकोणों का समन्वय या एकीकरण । किसी भी वस्तुको यदि पूर्णरूपसे समझना है तो इसके लिए विभिन्न दृष्टिकोणोंसे उसका निरीक्षण करना आवश्यक है । क्योंकि ऐसा किए बिना वस्तुका पूर्णरूप समझ में नहीं आ सकता किसी भी बातपर विभिन्न दृष्टिकोणोंसे विचार करनेका नाम ही स्याद्वाद है और एक दृष्टिकोण ( One point of view) से किसी विषय पर विचार करना एकान्तवाद है । एकान्तवादी अपने दृष्टिकोण से स्थिर किए हुए सत्यको पूर्ण सत्य मानकर अन्य लोगों के दृष्टिकोणोंको मिथ्या बतलाते हैं । मतभेदों तथा संघर्षोंका कारण यही
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