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________________ (४८) जिनगुन धार धर्म धन सचो, भव दारिदहर तारा ॥आज. ॥ ३ ॥ इक नभ नव इक वर्ष (१९०१) माघवदी चौदश वासर सारा माथ नाय जुत साथ 'दौल' ने जय जय शब्द अचारा ॥ आज. ॥ ४ ॥ बुध महाचंद (पद १४१-१४५) (१४१) पूजा रचाऊं जो पूजन फल पाऊं तुम पद चाहूं जी ॥टेक ॥ निरमल नीर धार त्रय देकर चंदन पद चर्चाऊ' जी । उज्ज्वल तन्दुल पुंज बनाकर पुष्प चढ़ाऊं जी ॥पूजा. ॥ १ ॥ नाना रस नैवेद्य मंगाऊं दीपक जोति जगाऊं जी । धूप अनंग' मद संग खेयफल अर्घ धराऊ जी ॥पूजा. ॥ २ ॥ अष्ट द्रव्य को अर्घ बनाऊं नाचि नाचि गुण गाऊ जी । 'बुध महाचंद' कहै कर जोड्या तुम पद चाहूं जी ॥पूजा. ॥ ३ ॥ (१४२) और निहारो जी श्री जिनवर स्वामी अंतरयामी जी ॥ टेक ॥ दुष्ट कर्म मोय भव भव मांही देत रहे दुख भारी जी। जरा मरण संभव आदि कछु पार न पायो जी ॥और. ॥ १ ॥ मैं तो एक आठ संग मिलकर सोध सोध दुख सारो जी । दे से हैं वरजयो नहीं माने दुष्ट हमारो जी ॥ और ॥२॥ और कोउ मोय दीसत नाही सरणागत प्रत पालो जी ।। बुध महाचंद चरणा ढिग ठाड़ों शरणूं थाका जी ॥ ३ ॥ (१४३) तुम्हें देखि जिन हर्ष हुवो हम आज ॥टेर ॥ जनमत सहस्र नयन हरि रचिये तुम छवि देखन काज ॥ १ ॥ तुम तन तेज शीतल तल लखिके रवि शशि छवि कृत लाज ॥२॥ रंक रत्न ऋद्धि धरि धरनते होते आनंद समाज ॥ ३ ॥ चातक चित में हर्ष होत है ज्यो सुनि सुनि घन' गाज ॥४॥ तुम जग तारण तिरण भवोदधि कीनी धर्म जिहाज ॥५॥ १. लगाऊ २. कामदेव ३. जोड़कर ४. मुझे ५. बहुत ६. रोकने पर ७. दिखाई देता है ८. रक्षा करो ९. आपकी शरण में खड़ा हूं १०. मेघों की गर्जना । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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