SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४१) जिन मुख चन्द चकोर चित मुझ ऐसी प्रीत करी ॥ नैनन. ॥ १ ॥ और अदेवन के चितवन' को अब चित चाहर टरी । ज्यों सब धूल दवै दिश-दिश की, लागत मेघझरी । नैनन. ॥ २ ॥ छवी समायरे रही लोचन में विसरत नाहि घरी। 'भूधर' कह यह ढेव रहो थिर जनम जनम हमरी ।। नैनन. ॥ ३ ॥ (११९) शेष सुरेश नरेश रटैं तोहि', पार न कोई पावजू ॥टेर ॥ कोपै नपत व्योम विलसत सौं को सारे गिन लावै जू ॥ शेष. ॥ १ ॥ कौन सुजान मेघ बूंदन की संख्या समुझि सुनावै जू ॥ शेष. ॥ २ ॥ 'भूधर' सुजस गीत संपूरन, गनपंति भी नहि गावै जू ॥ शेष. ॥३॥ (१२०) सांचों देव सोई जामै दोष को न लेश कोई, वहै गुरु जाकै उर काहूं की न चाह है। सही धर्म वही जहां करुना प्रधान कही, ग्रंथ जहां आदि अंत एकसौ निवाह है। ये ही जग रत्न चार इनको परख यार, सांचे लेह झूठे डार नरभौ° को लाह है। मानुष · विवेक बिना पशुकी समान गिना, तातै याही बात ठीक पारनी सलाह है। (१२१) जो जगवस्तु समस्त, हस्ततल' जेम२ निहारै । जगजन को संसार, सिंधु के पार उतारै ।। आदि अंत-अविरोधी, वचन सबको सुखदानी । गुन अनंत जिंहमांहि, रोग की. नाहिं निशानी ॥ माधव महेश ब्रह्मा किंधौं, वर्धमान कै बुद्ध यह । ये चिन्ह जान जाके चरन, नमो-नमो मुझ देव वह ।। १.देखने की २.इच्छा नष्ट हो गई ३.भरी है ४.भूलना ५.आपको ६.नपता है ७.थोड़ा ८.इच्छा नहीं है ९.निर्वाह १०.मनुष्य भव ११.हाथ में रखे हुए १२.की. तरह १३.देखे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy