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(४०) विषय कषाय अताप नस्यो सब, साम्य सरोवर न्हाये । रुचि भई तुम समान होवे की, 'भागचंद' गुन गाये ॥ म. ॥ ३ ॥
महाकवि भूधरदास (पद ११६-१२२)
(११६)
राग धमाल देखे जगत के देव, राग रिससौं भरे ॥ टेक ॥ काहू के संग कामिनि' कोऊ आयुधवान' खरे ॥ देखे. ॥ १ ॥ अपने औगुन आपही हो प्रगट करैं उधरें । तऊ अबूझन बूझहिं देखो जन मृग भोर परे ॥देखे. ।। २ ।। आप भिखारी है किनहीं को, काके दलिद हरे । चढ़ि पाथर की नाव पै कोई सुनिये नाहिं तरे ॥देखे. ॥ ३ ॥ गुन अनंत जा देव में औ ठारइ दोष टरे । 'भूधर' ता प्रति भावसौं दोऊ कर निज सीस धरे ॥ देखे. ॥ ४ ॥
(११७)
राग सारंग भवि देखि छवि भगवान की ॥ टेक ॥ सुंदर सहज सोम आनंदमय, दाता परम कल्यान की ॥ भवि. ॥ १ ॥ नासादृष्टि मुदित मुखवारिज', सीमा सब उपमान की । अंग अंडोल अचल आसन दिढ़, वही दसा निज ध्यान की ॥२॥ इस जोगासन जोग रीतिसों सिद्ध भई शिवथान की । ऐसे प्रगट दिखावै मारग, मुद्रा धात', पखान की ॥ भवि. ॥ ३ ॥ जिस देखे देखन अभिलाषा, रहत न रंचक आनकी। तृपत होत ‘भूधर' जो अब ये, अंजुलि अम्रत पानकी ॥ भवि. ॥ ४ ॥
(११८)
राग-ख्याल नैननि वान'३ परी दरसन की। ॥ टेक ॥
१.राग द्वेष से २.स्त्री ३.हथियार ४.स्पष्ट ५.नासमझ ६.दरिद्र ७.पत्थर ८.अठारह ९.आनंदित १०.मुखकमल ११.धातु, पत्थर १२.दूसरे की १३.आदत ।
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