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________________ (३१) नवल धवल पल सोहै कल में, क्षुध तृष व्याधि टरी ।। हलत' न पलक अलक' नख बढ़त न गति नभ मांहि करी ॥ध्यान. ॥ २ ॥ जा बिन शरन मरन जर' घर घर, महा असात भरी. । दौल तास पद दास होत है, बास मुक्ति नगरी. ॥ ३ ॥ चार तीस आर नमत सतत अद्भुत भान से सब ही ॥ ४ ॥ नेमि प्रभू की श्यामवरन छवि नैनन छाय रही ॥टेक ॥ मणिमय सीन पीठ पर अंबुज तापर अधर ठहो ॥ नेमि. ॥ १ ॥ मार मार तप धार जार विधि, केवलऋद्धि लही। चार तीस अतिशय दुतिमंडित नवदुर्ग दोष नहीं ॥ नेमि. ॥ २ ॥ जाहि सुरासुर नमत सतत, मस्तकतें परस मही । सुरगुरुवर अम्बुज प्रफुलावन अद्भुत भान सही ॥नेमि. ॥ ३ ॥ घर अनुराग विलोकत जाको; दुरित° नसै सब ही । दौलत महिमा अतुल जास की, कापै जात कही ॥नेमि. ॥ ४ ॥ (९३) प्यारी लागै म्हाने १ जिन छवि थारी॥ टेक ॥ परम निराकुल पद दरसावत, पर विरागताकारी । षट भूषन बिन पै सुन्दरता सुर नर मुनिमन हारी ॥प्यारी. ॥ १ ॥ जाहि बिलोकत भवि निज निधि लहि चिरभवता टारी । निर निमेषः देख सची१२ पती, सुरता३ सफल विचारी ॥ प्यारी. ।। महिमा अकथ होत लख ताकी, पशुसम समकितधारी । दौलत रहो ताहि, निरखनकी, भव भव टेव हमारी ॥प्यारी. ॥ ३ ॥ (९४) उरग-सुरग" - नरईश शीस जिस, आतपत्र'६ त्रिधरे । कुंद कुसुम सम चमर अमर गन ढारत मोदभरे ॥उरग. ॥ टेक ॥ तरु अशोक जाको अवलोकत, शोक थोक उजरे । पारजात संतान कादिके, बरसत सुमन वरे" ॥उरग. ॥ १ ॥ सुमणि विचित्र पीठ अंबुज पर राजत जिन सुमिरे । १. हिलना २. बाल ३. बुढ़ापा ४. कमल ५. स्थित है ६. जलाकर ७. ३४; ८. १८; ९. विकसित १०. पाप ११. मुझे १२. इन्द्र १३. देवत्व १४. सर्प १५. स्वर्ग १६. छत्र १७. आनंदित १८. सुन्दर अच्छे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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