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(३७)
राग-विलावल रटि रसना मेरी रिषभ जिनन्द, सुर-नर जच्छ' चकोरन चन्द ॥ टेक॥ नामी नाभि नृपति के बाल मरुदेवी के कुँवर कृपाल ॥ रटि. ॥१॥ पूज्य प्रजापति पुरुष पुरान, केवल' किरन धरै जगभान ॥ रटि. ॥२॥ नरक. निवारन विरद विख्यात, तारन तइन जगत के लाल ॥ रटि. ॥ ३॥ भूधर भजन किये निरवाह, श्री पद-पदम भँवर हो जाह ॥ रटि ॥ ४ ॥
(३८)
राग-गौरी . मेरी जीभ आठौं जाम, जपि जपि ऋषभ जिनिंदजी का नाम ॥ टेक॥ नगर अजुध्या उत्तम ठाम', जनमैं नाभि नृपति के धाम ॥ मेरी. ॥ १ ॥ सहस अठोत्तर अति अभिराम, लसत सुलच्छन लाजतकाम ॥ मेरी. ॥ २ ॥ करि थुति गान थके हरि राम, गनि न सके गनधर गुन ग्राम ॥ मेरी. ॥ ३ ॥ 'भूधर' सार भजन परिनाम, अर सब खेल-खेल के खांम (?) ॥ मेरी. ॥ ४ ॥
(३९) देखो गरबगेली री हेली १ । जादोंपति१२ की नारी ॥ टेक । कहां नेमि नायक निज मुखसौं टहल१३ कहै बड़भागी ।। तहां गुमान कियो मतिहीनी, सुनि उर दौसी५ लागी ॥ देखो. ॥ १ ॥ जाकी चरण धूलिको तरसै, इन्द्रादिक अनुरागी । ता प्रभुको तन-वसन न पीड़े, हा ! हा! परम अभागी॥ देखो. ॥२॥ कोटि जनम अघभंजन जाके, नामतनी बलि जइये । श्री हरिवंश तिलक तिस६ सेवा, भाग्य बिना क्यों पइये ॥ देखो. ॥ ३ ॥ . धनि वह देश धन्य वह धरनी, जग में तीरथ सोई । 'भूधर' के प्रभु नेमि नवल निज, चरन धरै जहाँ बोई१८ ॥ देखो. ॥ ४ ॥
१. यक्ष २. प्रसिद्ध ३. केवलज्ञान ४.पहर ५.स्थान ६.घर ७.कामदेव भी शर्माता है ८.श्रुति ९.खम्भा १०.घमंडी ११.सखी १२.यादव पति १३.सेवा १४.घमंड १५.अग्नि सी १६.उसकी १७.पृथ्वी १८.दोनों।
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