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कवि नयनसुख
नयनसुख ने अपने पदों के माध्यम से अध्यात्म एवं भक्ति की सरिता प्रवाहित की। इनके पद मानव को सांसारिक भौतिक चकाचौंध से सावधान करते हैं। काव्यात्मक दृष्टि से भी वे उपादेय हैं। भावों के साथ उनमें प्रकृति के रम्य उपादानों का अनुपम समन्वय है। कवि द्वारा इन पदों का प्रणयन वि० सं० १९१६ (सन् १८५९) में किया गया, जिससे ज्ञात होता है कि कवि १९वीं सदी के मध्य में कभी हुआ था। रायचन्द्र भाई (राजचन्द्र भाई)
रायचन्द्र भाई का व्यक्तित्व विलक्षण आकर्षक प्रभावक आदर्श प्रेरक एवं अनोखा था। वे बहुमूल्य रत्नों के जौहरी व्यापारी थे। देश-विदेश में उनकी व्यापारिक कोठियाँ थीं, जहाँ से रत्न का व्यापार होता था। उस कार्य को विधिवत् गरिमापूर्ण तथा अपनी पूर्ण सत्यनिष्ठा के साथ व्यवस्थित रखते हुए भी वे आत्म-संशोघन तथा गहन आत्मचिन्तन में संलग्न रहे। अपनी संयत-साधना एवं एकाग्रता के कारण - वे शतावधानी भी बन सके थे। उनके विराट एवं प्रभावक व्यक्तित्व का पता इसी से चल जाता है कि महात्मा गाँधी जैसी पारखी परीक्षा-प्रधानी व्यक्ति ने अपने तीन गुरुओं में से रायचन्द्र भाई को ही प्रधान गुरु माना और अपनी विश्व प्रसिद्ध “आत्मकथा' में उनके साधनापूर्ण प्रधान व्यक्तितत्व की श्रद्धासमन्वित चर्चा की है। एक स्थान पर गान्धी ने स्वयं लिखा है :
"मेरे जीवन पर श्रीमद् राजचन्द्र भाई का ऐसा स्थायी प्रभाव पड़ा है कि . मैं उसका वर्णन नहीं कर सकता। उनके विषय में मेरे गहरे विचार हैं। मैं कितने ही वर्षों से भारत में धार्मिक पुरुष की शोध में हूँ, परन्तु मैने ऐसा धार्मिक पुरुष भारत में अब तक नहीं देखा, जो श्रीमदं राजचन्द्र भाई के साथ प्रतिस्पर्धा में खड़ा हो सकें। उनमें ज्ञान, वैराग्य और भक्ति थी, ढोंग, पक्षपात या राग-द्वेष न थे। उनमें एक ऐसी महती शक्ति थी कि जिसके द्वारा वे प्राप्त हुए प्रसंग का पूर्ण लाभ उठा सकते थे। उनके लेख अग्रज तत्त्व-ज्ञानियों की अपेक्षा भी विचक्षण, भावनामय और आत्मदर्शी हैं। यूरोप के तत्त्व-ज्ञानियों में मैं टालस्टाँय को प्रथम श्रेणी का और रस्किन को दूसरी श्रेणी का विद्वान् समझता हूँ, पर श्रीमद् राजचन्द्र भाई का अनुभव इन दोनों से भी बढ़ा-चढ़ा है।"
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