SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२१) कि साहित्य की चिरस्थायी सम्पत्ति में इसकी गणना अवश्यमेव होगी। हिन्दी का तो यह सर्वप्रथम आत्मचरित है ही, पर अन्य भारतीय भाषाओं में इस प्रकार की और इतनी पुरानी पुस्तक मिलना आसान नहीं और सबसे अधिक आश्चर्य की बात यह है कि कविवर बनारसी दास का दृष्टिकोण आधुनिक आत्म-चरित लेखकों के दृष्टिकोण से बिलकुल मिलता जुलता है।" कवि बनारसी दास का जन्म जौनपुर के एक सम्भ्रान्त परिवार में सम्वत् १६४३ (सन्१५८६ई०) की माघ सुदी ११ को हुआ था। इनके पिता का नाम खड़गसेन था। इनका गोत्र श्रीमाल था। सुगल-सम्राट अकबर, सम्राट जहाँगीर एवं शाहजहाँ के साथ इनके घनिष्ठ सम्बन्ध थे। उनके विषय में अनेक प्रेरक घटनाएँ प्रसिद्ध हैं, जिनका उल्लेख महाकवि ने स्वयं ही अपने अर्धकथानक में किया है। भैया भगवती दास भैया भगवतीदास की समस्त रचनाओं का संग्रह ब्रह्मविलास नाम का गन्थ में किया गया है, जिसमें इनकी ६७ रचनाएँ संग्रहीत हैं। वे अध्यात्मरसिक कवि थे। उन्होंने विविध रूपकों के माध्यम से आत्मतत्त्व का परिचय दिया है। इनकी भाषा प्रवाहपूर्ण प्रांजल, प्रसाद-गुण युक्त एवं भावानुगामिनी है। उसमें उर्दू और गुजराती का पुट भी उपलब्ध होता है। भैया भगवती दास ने अपने पदों में अपने अनेक उपनामों का उल्लेख किया है। जैसे भैया, भविक, दास, भगोतीदास और किशोर आदि। इन्होंने ब्रह्मविलास के अन्त में अपना जो परिचय दिया है, उसी से यह जानकारी मिलती है, कि ये आगरा-निवासी लालजी के पुत्र थे। ये ओसवाल जैन थे। इनका गोत्र कटारिया था। इनके जन्म-सम्वत् या मृत्यु-सम्वत् के सम्बन्ध में कोई निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं होती। केवल इनकी रचनाओं में वि० सं० १७३१ से १७५५ तक का उल्लेख उपलब्ध होता है, इससे यह निश्चित हो जाता है कि वे वि० सं० १७३१ से १७५५ (सन् १६७४-१६९८) तक इस नश्वर संसार में अपनी साहित्य-साधना में संलग्न रहे। द्यानतराय द्यानतराय हिन्दी-भाषा के महान् सन्त कवि थे। इनका प्रमुख कार्य काव्य-रचना ही था। इनकी प्राय: सभी रचनाओं का संग्रह “धर्मविलास' के नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें छोटे-बड़े ३३३ पद-पूजाएँ एवं ४५ विविध विषयों पर फुटकर रचनाएँ, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy