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________________ (२०७) ऐसे मूरख राज जगवासी जिय देखिये ॥ कवि कुन्दन (५५५) तन नहीं छूता कोई, चेतन निकल जाने के बाद ।। फेंक देते फूल ज्यों, खुशबू निकल जाने के बाद ॥१॥ आज जो करते किलोले', खेलते हैं साथ में । कल डरेंगे देख तन, निरजीव हो जाने के बाद ॥ २ ॥ बात भी करते नहीं जो, आज धन की ऐंठ में । मंगते नजर आये वही, तकदीर' फिर जाने के बाद ॥ ३ ॥ पाँव भी धरती पै जिनने, हैं कभी रक्खे नहीं । वन में भटकते वो फिरे, आपत्ति आ जाने के बाद ॥४॥ बोलते जबलौं सगे, हैं चार पैसा पास में।। नाम भी पूंछे नहीं, पैसा निकल जाने के बाद ॥ ५ ॥ स्वार्थ प्यारा रह गया, असली मुहब्बत उठ गई । भूल जाता माँ को बछड़ा, पय निकल जाने के बाद ॥६॥ भाग जाता हंस भी, निर्जल सरोवर देखकर । छोड़ देते वृक्ष पक्षी, पत्र झड़ जाने के बाद ॥७॥ लोक ऐसे मतलबी, फिर क्यों करें विश्वास हम। बाल डरता आग से, इकबार जल जाने के बाद ॥८॥ इस अथिर संसार में, क्यों मग्न 'कुंदन' हो रहा । देख फिर पछतायेगा, असमर्थ हो जाने के बाद ॥ ९ ॥ कवि जिनेश्वरदास (५५६) जगत की झूठी सब माया, अरे नर चेत वक्त पाया ॥ टेक ॥ कंचन' वरनी कामिनी, जोवन में भरपूर । अन्तर दृष्टि निहारते, मलमूरत मशहूर ॥ कुधी नर इसमें ललचाया ॥ अरे नर. ॥१॥ १. सिलवाड़ २. किस्मत बदल जाने पर ३. जब तक ४. दूध ५. पत्ते ६. बच्चा ७. अस्थिर ८. समय ९..सोने सा रूप १०. मल मूत्र भरी हुई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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