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(२०६)
अरे 'शिवराम' ना अब सो कि अवसर तेरा बन आया॥ ५ ॥
कवि कुमरेश
(५५२) यह जग झूठा सारा रे मन, नाहक क्यों ललचाया ॥ टेक ॥ तन धन यौवन पर गुमान क्या, यह चपला की छाया। सचमुच क्षण में विनशि जायगी, तेरी कंचन काया ॥१॥ मात पिता परिवार पुत्र सब, नारी अरु समुदाया । देखत के नीके लागत हैं, वक्त पै काम न आया ॥ २ ॥ धर्म अमर है अमर रहेगा, याकी सांची छाया । विफल गमावत क्यों मानुष भव, कठिन कठिन ते पाया ॥ ३ ॥ वीर प्रभु का ध्यान निरन्तर, करले मन शुध भावा । समय निकल ‘कुमरेश' जायगा, रह जैहे पछतावा ॥ ४ ॥
कवि चुन्नी
(५५३) करो कल्याण आतम का, भरोसा है न इक पलका ॥टेक ॥ ये काया कांच की शीशी, फूल मत देखकर इसको । छिनक में फूट जायेगी, कि जैसे बुद-बुदा' जल का ॥१॥ यह धन दौलत मकां मंदिर जो तू अपना बताता है । कभी हरगिज नहीं तेरे छोड़ जंजाल सब जग का ॥२॥ स्वजन सुन मात पितु दार,१२ सबै परिवार अरु ब्रादर । खड़े सब देखते रहेंगें, कूच होगा जभी दमका३ ॥३॥ बड़ी अटवी" यह जग रूपी फंसो मत देखकर इसको। कहे 'चुन्नी' समझ दिल में सितारा ज्ञान का चमका ॥ ४ ॥
(५५४) कर कर जिनगुन पाठ, जात अकारथ५ रे जिया । आठ पहर में साट घरो घनेरे६ मोल की ॥ कानी कौड़ी काज कोरि को लिख देत खत ।
१. व्यर्थ २. घमंड ३. चंचला ४. नष्ट हो जायेगी ५. सोने सा शरीर ६. अच्छे ७. मुश्किल से ८. शुद्ध भाव से ९. रह जायगा १०. शरीर ११. पानी का बुलबुला १२. स्त्री १३. प्राणों का १४. जंगल १५. व्यर्थ १६. बहुत मूल्य की।
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