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(१९५) इन विषयन में मत राचैं ये चहुँगति भरमावै ॥ सुगुरु. ॥ टेक ।। सपरस वस गज मीन रसनवस कंटक' कंठ छिदावै । नासा बस अलि कमल बंध में परत महादुख पावै ॥ सुगुरु. ॥ १ ॥ चक्षु विषय बस दीप शिखा में अंग पतंग तपावै । करन विषय वस हिरन अरन में नाहक प्राण गमावै ॥ सुगुरु. ॥ २ ॥ विषयन के वस हिंसा चोरी, झूठ कुशील कहावै । परधन परकामिनि लोभी परिग्रह में चित लावै ॥ सुगुरु. ॥ ३ ।। इनही के वस मिथ्या परनति, करत महादुख पावै। याही २ नै जगमांहि ‘जिनेश्वर' मिथ्या विषय छुड़ावै ॥ सुगुरु. ॥ ४ ॥
कवि दौलतराम
(५२४) विषयोंदा३ मद मानै, ऐसा है कोई वे॥ टेक ॥ विषय दुःख अर दुःखफल तिनको, यौं नितचित न ठानै ॥ विषयोंदा. ॥ १ ॥ अनुपयोगि उपयोगि स्वरूपी, तन चेतन को मानै ॥ विषयोंदा. ॥ २ ॥ वरनादिक'४ रागादिक भावः भिन्न रूप तिन जानै ॥ विषयोंदा. ॥ ३ ॥ स्वपर जान रूप राग हान, निजमैं निज परिनति सानै ॥ विषयोंदा. ॥ ४॥ अन्तर बाहर को परिग्रह तजि, 'दौल' वसै शिवथानै ॥ विषयोंदा. ॥ ५ ॥
कवि भागचंद
(५२५) हरी ६ तेरी मति नर कौन हरी तजि चिन्ता ममत कांच गहत शठ ॥ टेक ॥ विषय कषाय रुचत तोकौं नित, जे दुख करन अरी ॥ हरी ॥१॥ सांचे मित्र सुहितकर श्रीगुरु, तिनकी सुधि विसरी॥ हरी. ॥ २ ॥ पर परनति में आपो मानत, जो अति विपति भरी॥ हरी. ॥ ३ ॥ 'भागचन्द' जिन राज भजन कहुँ करत न एक घरी ॥ हरी. ॥ ४ ॥
१. लीन मत होओ २. भ्रमण करता है ३. स्पर्श ४. रसना, जीभ ५. कांटा ६. भौरा ७. कर्ण, कान ८. जंगल ९. व्यर्थ १०. कहलाता है ११. पर स्त्री १२. इसी से १३. विषयों का १४. वर्ण आदि १५. द्वेष १६. हरण करती १७. अच्छी लगती है १८. भुलदी १९. घड़ी।
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