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________________ (१९४) पूरब कर्म उदय सुख आया राजौ' माचौ जी । पाप उदय पीड़ा भोगन मैं क्यों मन काचौ' जी ॥ मति. ॥ २ ॥ सुख अनन्त के धारक तुम ही, पर क्यों जांचौ जी। 'बुधजन' गुरु का वचन हिया मैं जानो सांचो जी ॥ ३ ॥ __ (५२१) राग - सोरठ मौगांरा लोभीड़ा, नरभव खोयो रे अजान । मौगांरा. ॥ टेक ॥ धर्म काज कौ कारन थौ यौ सो भूल्यों तू बान । हिंसा अनृत परितय चोरी, सेवत निजकरि जान ॥मौगांरा. ॥१॥ इन्द्रिय सुख सै मगन हुवौ तू परको आतम मान । बंध नवीन पड़े छै या” होवत मोटी हान ॥ मौगांरा. ॥२॥ गयौ न कछु जो चेतौ 'बुधजन' पावो अविचल थान । तन है जड़ तू दृष्टा ज्ञाता, करलै यों सरधान ॥मौगांरा. ॥ ३ ॥ कवि भागचंद (५२२) राग - सोरठ आवै न भोगन में तोहि गिलान३॥ टेक ॥ तीरथ ४ नाथ भोग तजि दीने, तिन” मन भय आन । तू तिनतै कहुं डरपत" नाहीं, दीसत अति बलवान ॥ आवै. ॥१॥ इन्द्रिय तृप्ति काज तू भोगै, विजय महा अघखान" । सो जैसे घृतधारा" डारै पावक ज्वाल बुझान ॥ आ. ॥२॥ जे सुख तो तीछन दुख दाई, ज्यों मधु लिप्त-कृपान । तातें भागचन्द' इनको तजि आत्म स्वरूप पिछान ॥ आ. ॥३॥ कवि जिनेश्वर (५२३) सुगुरु कृपा कर यों समझावै, १. खुश हुआ २. कच्चा ३. मांगना ४. हृदय ५. भोगों का भोगी ६. अज्ञानी ७. था ८. यह ९. पर स्त्री १०. अपना समझना ११. नया कर्म बंध होता है १२. बड़ा नुकसान होता है १३. ग्लानि १४. तीर्थकर १५. डरना १६. दिखाई देता है १७. पापों की खान १८. घी की धारा १९. तीक्ष्ण २०. शहद लिपटी हुई तलवार २१. पहचान । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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