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(१६१) जो सतावे और को सुख वह कभी पाता नहीं ॥ २ ॥ हिरण खुशबू के लिए दौड़ा फिरे जंगल के बीच । अपनी नाभी में बसे फिर देख भी पाता नहीं ॥३॥ ज्ञान पै 'न्यामत' तेरे है, मोह का परदा पड़ा । इसलिए निज आत्मा तुझ को नजर आता नहीं ॥ ४ ॥
कवि मक्खनलाल
(४४३) दुनिया में सबसे न्यारा,' यह आत्मा हमारा, सब देखन जानन हारा, यह आत्मा • ॥ टेक ॥ यह जले नहीं अग्नी में, भीगे न कभी पानी में, सूखे न पवन के द्वारा, यह आत्मा हमारा. ॥१॥ शस्त्रों से कटे न काटा, नहि तोड़ सके कोई भाटा, मरता न मरी का मारा, यह आत्मा हमारा. ॥२॥ मां बाप सुता सुत नारी झूठे झगड़े संसारी, नहिं देता कोई सहारा, यह आत्मा हमारा. ॥३॥ मत फंसे मोह ममता में, ‘मक्खन' आजा आपा में, तन धन कछु नाहि तुम्हारा, यह आत्मा हमारा. ॥४॥
(४४४) आत्मा क्या रंग दिखाता नये नये । बहुरुपिया ज्यों भेष बनाता नये नये ॥ टेक ॥ धरता है स्वांग देव का, स्वर्गों में जायके । करता किलोल' देवियों के संग नये नये ॥ आत्मा. ॥ १ ॥ गर नर्क में गया तो, रूप नार की धरा । लखि° मार पीट भूख प्यास दुख नये नये ॥ आत्मा. ॥ २ ॥ तिर्यंच में गज बाज वृषभ महिष२ मृग अजा३ । धारे अनेक भांति के, काबिल नये नये ॥ आत्मा. ॥ ३ ॥ नर नारि नपुसंक बमा, मानुष की योनि में,
गर
मार पीट भूख
महिष
नये
१. दिखाई नहीं देता २. अलग ३. पत्थर ४. महामारी ५. पुत्री ६. पुत्र ७. अपने में ८. जाकर ९. क्रीड़ा १०. देखकर ११. बैल १२. मैंस १३. बकरी ।
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