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(१५३)
या विन समझे द्रव्य' लिंग मनि उग्र तपन कर भार भरो । नवग्रीवक पर्यन्त जाय चिर, फेर भवार्णव' मांहि परो ॥ २ ॥ सम्यग्दर्शन ज्ञान चरन तप, येहि जगत में सार नरो । पूरव शिव को गये जांहि अब फिर जैहें यह नियत करो ॥ ३ ॥ कोटि ग्रन्थ को सार यही है, ये ही जिनवारी उचरो। 'दौल' ध्याय अपने आतम को मुक्ति रमा तब वेग वरो ॥ ४ ॥
कवि कुंजीलाल
(४२७)
होली-ठेका दीपचन्दी सुमति सदा सुखकार मैं चेतन की रानी ॥टेक ॥ ज्ञान भानु मम पिता जगत में घट घट मांहि प्रचार हो, हो, हो, मैं चेतन की रानी ॥सुमति. ॥१॥ स्वपर विवेक मित्र पितु के हैं जगजीवन सुखकार हो, हो, हो, मैं चेतन की रानी॥ सुमति. ॥२॥ विषय निरोधक संवर योद्धा, सैन्य सहित तैयार । हो, हो, हो मैं चेतन की रानी ॥सुमति. ॥ ३ ॥ क्षमाशील सब मेरे भ्राता, धर्म मेरा परिवार । हो, हो, हो, मैं चेतन की रानी॥ सुमति. ॥४॥ शुभ लेश्या तीनों मम भगिनी, शांति सहेली'' हमार । हो, हो, हो, मैं चेतन की रानी ॥ सुमति. ॥५॥ चेतन राज' पति हैं मेरे मम मोक्ष महल दरवान । हो, हो, हो, मैं चेतन की रानी॥ सुमति. ॥६॥ 'कुञ्जी लाल' सुमति हियर धारो जगते हो उद्धार । हो, हो, हो, मैं चेतन की रानी॥ सुमति. ॥७॥
१.मात्र त्यागी २.संसार-सागर ३.करोड़ ४.कहा ५.मोक्ष ६.जल्दी वरण करो ७.ज्ञान-सूर्य ८.आत्मा ९.रोकने वाला १०.सखी ११.चेतन रूपी पति १२.हृदय में धारण करो।
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