________________
(१४८) कविवर जिनेश्वरदास
(४१५)
लावनी राग भैरवी में अपना भाव' उर धरना प्यारे जी अपना भाव सुखदान' बड़ा अपना भाव जिनने उर धारा, तिन पाया शिवथान बड़ा ॥ टेक ॥ नरभव पाय चतुर मति चूकै, यह मोका हितदान बड़ा । जो करना सो निजहित करलैं, चिंतामन समजान बड़ा॥ अपना. ॥१॥ धन जोवन बादल की छाया, को इसमें ललचाता है। इनही भावनतें सुन प्यारे, कर्म अरी" भरमाता है॥ अपना. ॥ २ ॥ धन संबंध करम की छाया, इन सबमें तू न्यारा है। ये जड़ प्रगट अचेतन प्यारे, तू सब जाननहारा है॥ अपना. ॥ ३ ॥ रागद्वेष मद मोह छोड़ कैं, वीतराग परिनाम किया । पूरन ब्रह्म परम पद पावन, आप 'जिनेश्वर' सरन लिया ॥ अपना. ॥ ४ ॥
महाकवि दौलतराम
(४१६) जिया तुम चालो अपने देश, शिवपुर थारो शुभथान ॥ टेक ॥ लख चौरासी में बहु भटके, लह्यौ न सुखको २ लेश ॥१॥ मिथ्या रूप धरे बहुतेरे, भटके बहुत विदेश ॥२॥ विषयादिक बहुत दुख पाये, भुगते'३ बहुत कलेश ॥३॥ भयो तिरजंच नारकी नर सुर करि करि नाना भेष ॥४॥ दौलत राम तोड़ जगनाता, सुनो सुगुरू उपदेश ॥५॥
(४१७) अपनी सुधि भूल आप, आप दुख पायो, ज्यौं शुक" नभचाल विसरि नलिनी' लटकायो ॥ अपनी. ॥टेक ॥ चेतन अविरुद्ध शुद्ध दरशबोधमय विशुद्ध तजि-जड़ रस फरस" रूप पुद्गल अपनायौ ॥ अपनी. ॥१॥
०१७)
१.आत्म भाव २.सुख देने वाला ३.हृदय में धारण किया ४.मत चूको ५.बहुत हितकारक ६.यौवन ७.शत्रु ८.घुमाते है ९.जानने वाला १०.शरण ११.आपकी १२.तनिक सा सुख १३.बहुत दुख भोगे १४.तिर्यच १५.तोता १६.कमलिनी १७.स्पर्श
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org