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(३५६) राग- गारो तेताल
म्हारी भी सुणि' लीज्यो, हो मोकौ तारण, सुफल भये लखि मोरे नैन || म्हारी भी. ॥ टेक ॥ तुम अनंत गुन ज्ञान भरे हो, वरनन' करतें देव थकत हैं, कहि न सकै मुझ बैन ॥ म्हारी भी. हम तो अनंत ै दिन अनत भरम रहे, तुमसा कोऊ नाहिं देखिये, आनंद घन चित चैन 'बुधजन' चरन शरन तुम लीनी बांछा संग न रहै दुख
दैन ।
॥ म्हारी भी. ॥ २ ॥ मेरी पूरन कीजे म्हारी भी.
॥ ३ ॥
(३५७)
राग - दीपचन्दी
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॥ १ ॥
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मेरी अरज कहानी सुनि केवलज्ञानी ॥ मेरी. ॥ टेक चेतन के संग जड़ पुद्गल मिली, सारी वुधि वौरानी भव वन मांही फेरत मौको लाख चौरासी थानी कौलों बरनौं" तुम सब जानो जनम मरन दुखदानी ॥ २ ॥ भाग" भले तैं मिले 'बुधजन' को तुम जिनवर सुखदानी मोह १२ फासि को काटि प्रभुजी, कीजे केवल ज्ञानी
॥ ३ ॥
(३५८) राग- सोरठ
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बेगि ३ सुधि लीज्यौ म्हारी श्री जिनराज ॥ वेगि. ॥ टेक ॥ डरपावत १४ नित आयु रहत है संग लग्या जमराज जाके सुरनर नारक तिरजग ५, सब भोजन के साज १६ ॥ ऐसौ काल हरयौ तुम साहब यातैं मेरी लाज पर डर डोलते उदर भरन कौ होत प्रांत तैं साज 1 डूबत आश अथाह जलधि में द्यौ सम भाव
॥ २ ॥
जिहाज ॥ ३ ॥
१. सुन लीजिये २.वर्णन कर के देवता भी थक जाते है ३. अनंत काल से दूसरी जगह भटक रहे हैं ४. आपके जैसा दूसरा नहीं है ५. मेरी इच्छा पूरी करो ६. दुख देने वाले कर्म साथ न रहें ७. बुद्धि ८. घुमाते है ९. कबतक १०. वर्णन करूं ११. सौभाग्य से १२. मोह जाल को काटकर १३. शीघ्र ध्यान दें (खबर ले) १४. डराता है १५ तिर्यंच १६. सामग्री ।
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