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________________ (१२५) करि करुना करमन को काटो जनम मरन दुखदाय इनतें बहुत डरूं ॥ ३ ॥ चरन शरन तुम पाय अनूपम 'बुधजन' मांगत यह गति नाहि फिरूं ॥४॥ (३५३) मैं तेरा चेरा सुनो प्रभु अष्टकर्म मोहि घेरि रहे हैं दीनदयाल दीन मैं लखिके और जंजाल टाल सब मेरा, राखो चरनन चेरा ॥ 'बुधजन' ओर निहारो कृपाकरि विनवै वारूं' वेरा मेरा दुःख देहैं बहुतेरा ॥ मैंटो गति-गति फेरा 11 मैं. ॥ टेक Jain Education International मैं. ॥ 11 (३५५) राग-लूहरी सारंग जलद तेतालो मैं. 11 11 8 11 ॥ २ ॥ (३५४) राग-लहरि सारंग अरज करूं (तसलीम करूं) ठाड़ो विनउ चरनन को ' चेरो ॥ अरज ॥ टेक ॥ दीना नाथ दयाल गुसाई मोपर करुना करिकै हेरो' आज ॥ अरज. ॥ १ ॥ भव बन में निरवल° मोहि लखि कै दुष्ट कर्म सब मिलकै घेरो । नाना रूप बनाके मेरो गति चारों में दयो १ है फेरो ॥ अरज. ॥ २ ॥ दुखी अनादि काल को भटकत, शरनो आय गहयो मैं तेरो । कृपा करौ तो अब 'बुधजन' पै हरो' २ बेगि संसार बसेरो || अरज. ॥ ३ ॥ १२ For Personal & Private Use Only मै. ॥ ३ ॥ मै. ॥ ४ ॥ || मौंको १३ तारो जी किरपा १४ करिके ॥ मौको ॥ टेक अनादि काल को दुखी रहत" हूं, टेरत" जमतें डरिकै ॥ १ ॥ भ्रमत फिरत चारों गति भीतर, भवमांहि मारि मरि करिकैं । डूबत अगम अथाह जलधि मैं राखो हाथि पकरि करिकै ॥ २ ॥ मोह भरम विपरीत बसत उर आप न जानो निज करिकैं 1 तुम सब ज्ञायक मोहि उबारो, 'बुधजन' को अपना करिकै ॥ ३ ॥ १. बहुत डरता हूँ २. चारों गतियों में न भटकूं ३. सेवक ४. मुझे देखकर ५. बारबार ६. प्रार्थना करता हूं ७. खड़ा होकर ८. चरणों का दास ९.देखो १० कमजोर ११. चक्कर लगवाया है १२. जल्दी संसार बसेरा दूर करो १३. मुझको १४. कृपा करके १५.रहता हूं १६.यमराज से डरकर बुलाता हूं १७. हाथ पकड़ कर चलो । www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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