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________________ (१०२) जैसे कर्म कमाव है सौ ही फल वीरा । आम न' लागें आक के, नग' होय न हीरा ॥ सब विधि. ॥ २ ॥ जैसा विषयनि को चहै न रहै छिन धीरा । त्यों ‘भूधर' प्रभु को जपै पहुंचे भवतीरा ॥ सब विधि. ॥ (२९०) ऐसी समझ के सिर-धूल ॥ टेक ॥ धरम उपजन हेत हिंसा आचरै अघमूल ॥ ऐसी. ॥ १ ॥ छके मत मदपान पीके रहे मन में फूल, आम चखन चहै भोदूं वाये पेड़ बबूल ॥ ऐसी. ॥ २ ॥ देव रागी लालची गुरू सेय सुखहित° भूल । धर्म नग की परख नाही भ्रम हिंडोले झूल ॥ ऐसी. ॥ ३ ॥ लाभ कारन रतन विराजे१ परख को नहिं सूल । करत इह विधि वणिज २ भूधर' विनस जैहैं मूल ॥ ऐसी. ॥ ४ ॥ (२९१) राग-बंगला आया रे बुढापो मानी सुधि बुधि विरानी३ ॥ टेक ॥ श्रवन की शक्ति घटी, चाल चलै अटपटी, देह लटी५ भूख घटी लोचन'६ झरत पानी ॥आया रे ॥ १ ॥ दांतन" की पंक्ति टूटी, हाड़न की संधि छूटी, काया की नगरि लूटी जात नहिं पहिचानी ॥आया रे. ॥ २॥ बालों ने वरन फेरा रोगन शरीर घेरा, . पुत्रहूं न आवे नेरा, औरो की कहा कहानी ॥ आया रे. ॥ ३ ।। 'भूधर' समुझि अब, स्वहित करैगो कब, यह गति है हैं जब, तब पिछतै२१ है प्रानी ॥ आया रे. ॥ ४ ॥ १.आम नहीं लगते २.अकौआ में ३.पत्थर हीरा नहीं हो सकता ४.संसार के पार ५.समझको धिक्कार है ६.धर्म उत्पन्न करने ७.के लिए ८.पापों की जड़ ९.सुख के लिए १०.प्रम रूपी झूला ११ ख का है १२.व्यापार १३.मुला दी १४.कानों की शक्ति कम हो गई १५.शरीर कमजोर हो गया १६.आंखों से पान ,रने लगा १७.दाँतों की पंक्ति टूट गई १८.हड्डियों के जोड़ छूट गये १९.शरीर की नगरी २०.नजदीक, पास २१.पछतायगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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