SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१०१) (२८७) राग-ख्याल मन मूरख पंथी उस मारग मति जाय रे ॥ टेक ॥ कामिनि तन कांतार' जहाँ है कुच' परवत दुखदायरे ॥ १ ॥ काम किरात' बसै तिह थानक सरबस लेत छिनाय रे। खाय खता कीचक से बैठे अरू रावन से राय रे ॥ २ ॥ और अनेक लुटे इस पैंड° वरनै कौन बढ़ाय रे । वरजत' हों वरज्यौ २ रह भाई, जानि दगा३ मति खाय रे ॥३॥ सुगुरू दयाल दया करि 'भूधर' सीख कहत समझाय रे। आगै जो भावै करि सोई, दीनी बात जनाय रे ॥४॥ (२८८) राग-सोरठ चित ! चेतन की यह विरियां५ रे ॥ टेक ॥ उत्तम जनम सुनत तरुनापौ, सुजल बेल फल करियाँ रे ॥१॥ लहि सत संगाति सौं सब समझी, करनी खोटी खरियाँ रे । सुहित संभा शिथिलता तजिकै जाहैं बेली झरियाँ ९ रे ॥ २ ॥ दलबल चहल महल रूपे का अर कंचन की कलियां रे । ऐसी विभव बढ़ी है बढ़ि है तेरी गरज२२ क्या सरियां रे ॥३॥ खोय न वीर विषय खल सा२३ ये कोरन की धरियाँ५ रे । तोरि न तनकर तगाहित 'भूधर' मुक्ताफल की लरियां रे ॥ ४ ॥ (२८९) राग-विलावल सब विधि करन उतावला, समरको सीरा२९ ॥टेक ।। सुख चाहै संसार में यों होय न नीरा ॥सब विधि. ॥१॥ १.स्त्री का शरीर २.जंगल ३.स्तन ४.पर्वत ५.मील ६.उस स्थान पर ७.छीन लेते हैं ८.गलती ९.एक राक्षस १०.राजा ११.मना करता हूं १२.माने रहो १३.दगा, धोखा १४.आगे जो अच्छा लगे १५.समय, १६.अच्छी तरह उत्पन्न १७.फले है १८.थैली में भरना १९.झड़ जायेगी २०.चांदी का महल २१.सोने की डलिया २२.तेरा मतलब क्या सिद्ध होगा २३.चिपकाना २४.व्यर्थ की २५.घड़ियाँ(समय) २६.थोड़ी सी २७.धागे में पिरोइ गई २८.मोती की लड़ी २९.शांत, मौन ३०.समीप। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003995
Book TitleAdhyatma Pad Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchedilal Jain, Tarachand Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1996
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy