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(९३)
अरु दरिद्री कैं हूं ज्वर हैं, पाप उदय अपना ॥ धर्म. ॥ ३ ॥ नाती' तो स्वारथ के साथी, तोहि विपत भरना । वन गिरि सरिता अगनि जुद्ध' मैं धर्महि का सरना चित 'बुधजन' सन्तोष धारना, पर चिन्ता हरना । विपत्ति पडै तो समता रखना, परमातम जपना ॥ धर्म. ॥ ५ ॥
॥ धर्म. ॥ ४ ॥
(२६५)
राग - खंमाच
सुरग मुकति फल पावो जी ॥ टेक ॥
ऐसो ध्यान लगावो भव्य जासों जामै बंध परै नहि आगैं पिछले बंध हटावो जी ॥ ऐसो. ॥ १ ॥ इष्ट अनिष्ट कल्पना छोड़ो, सुख दुख एकहि भावो जी । पर वस्तुनि सों ममत निवारो निज आतम ल्यौ' ल्यावो' जी ॥ २ ॥ मलिन देह की संगति छूटै जामन" मरन मिटावो जी । शुद्ध चिदानंद 'बुधजन' यहां कै, शिवपुर वास वसावो जी ॥ ३ ॥
(२६६)
मैं देखा अनोखा अनोखा ज्ञानी वे ॥ मैं. ॥ टेक ॥ लारै १२ लागि आनकी भाई, अपनी सुधि विसरानी १३ वे ॥ मै. ॥ १ ॥ जा१४ कारन कुमति मिलत है सो ही निजकर " आनी वे ॥ मै. ॥ २ ॥ झूठे सुख के काज सयाने क्यों पीडै है प्रानी वे ॥ मै. ॥ ३ ॥ दया दान पूजन व्रत तप कर 'बुधजन' सीख बखानी वे ॥ मै. ॥ ४ ॥
(२६७) राग अहिंग
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तैं१६ क्या किया नादान तैं तो १७ अमृत तजि विष लीना ॥ टेक ॥ लाख चौरासी जौनि" माहितै, श्रावक कुल मैं आया । अब तजि तीन लोक के साहिब, ' नवग्रह पूजन धाया ॥ १ ॥ वीतराग के दरसन ही तैं उदासीनता आवै 1 तू तौ जिनके सनमुख ठाडो, २० सुत को ख्याल खिलावै ॥ २ ॥
१. सम्बन्धी २. तुझे ३. युद्ध ४. धर्म की शरण ५. जिससे ६. सुख दुख एक ही आना ७. दूर करो ८. लौ ९. लाओ १०. जन्म मरण ११. होकर १२. साथ लगकर दूसरे का १३. भुला दी १४. जिस कारण से १५. अपने हाथ आना १६. तू १७. तूने तो १८. योनि से १९. मालिक २०. खड़ा है।
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