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(८०)
मात तात नारी सुत कारण घर घर डोलत रूप रंग नव जोविन परकी' नारी देख पर की निन्दा आप बड़ाई करता जन्म धर्म कल्पतरु शिवफलदायक ताको जरतैं तिसकी ठोड महाफल चाखन पाप बबूल ज्यों कुगुरु कुदेव कुधर्म सेयके पाप भार बहु बुध महाचन्द्र कहे सुन प्रानी अंतर मन नही
न
रोयो ॥ २ ॥
रमोयो २
1
विगोयो रे ॥ ३ ॥
टोयो ।
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बोयो ॥४॥ ढोयो । धोयो ॥ ५ ॥
(२३१)
टेर 11
॥ २ ॥
॥ ३ ॥
देखो भूल हमारी हम संकट पाये ॥ सिद्ध समान स्वरूप हमारा डोले जेम' भिखारी ॥ १ ॥ पर परणति अपनी अपनाई पोट परिग्रह धारी द्रव्य कर्मवश भाव कर्मकर निजगल फांसी डाली जो कर्मन में मलिन कियो चित बांधे बंधन भारी बोये बीज बबूल जिन्होंने खावें क्यो सहकारी करम फसायें आग आखे भोगे सब संसारी ॥ ६॥ जैन सौख्य अब समताधारो अति गुरु सीख उचारो ॥ ७ ॥
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(२३२)
निज घर नाय' पिछान्या रे, मोह उदय होने तैं मिथ्या भर्म भुलाना रे ॥ टेक ॥ तू तो नित्य अनादि अरूपी सिद्ध समाना रे पुद्गल जड़ में राचि" भयो तूं मूर्ख २ प्रधाना रे || निज. ॥ १ ॥ तन धन जोविन पुत्र वधू आदिक निज मानारे । यह सब जाय रहन के नाई समझ सियाना रे ॥ निज. ॥ २ ॥ बाल पके लड़कन संग जोविन त्रिया १३ जवाना रे 1 वृद्ध भयो सब सुधिगई १४ अब धर्म भुलाना रे ॥ निज. ॥ ३ ॥ गई गई अब राख रही तू समझ सियाना रे 1 बुध महाचन्द्र विचारि के जिन पद नित्य रमाना रे ॥ निज. ॥ ४ ॥
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॥ ५ ॥
१. दूसरे की २. रमा ३. गमाया ४. जड़ से नहीं देखा ५. जिस प्रकार ६. पोटली, गठरी ७. अपने गले में ८. आम ९. नहीं १०.पहचाना ११.लीन होकर १२. पक्का मूर्ख १३. स्त्री १४. बुद्धि नष्ट हो गई ।
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