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________________ lir १९८ २२८-२२९ १९९-२०० २२९-२३० २०१-२०२ २३१-२३२ विषय-सूची सम्यग्दृष्टि जीव सामान्यरूप से स्व और पर को किस प्रकार जानता है? सम्यग्दृष्टि जीव विशेष रूप से स्व और पर को किस प्रकार जानता है? रागी सम्यग्दृष्टि क्यों नहीं होता, इसका समाधान स्वपद ग्रहण करने का उपदेश तथा स्वपद क्या है? इसका उत्तर ज्ञान की एकरूपता का समर्थन ज्ञानगुण के बिना स्वपद की प्राप्ति सम्भव नहीं है ज्ञानी पर को ग्रहण क्यों नहीं करता? इसका उत्तर ज्ञानी के धर्म का परिग्रह नहीं है ज्ञानी के अधर्म का परिग्रह नहीं है ज्ञानी के आहार और पान आदि का परिग्रह नहीं है ज्ञानी के त्रिकाल सम्बन्धी उपभोग का परिग्रह नहीं है ज्ञानी के वेद्य-वेदकभाव का अभाव ज्ञानी के भोग-उपभोग में राग नहीं होता उक्त बात का दृष्टान्त द्वारा समर्थन शङ्ख के दृष्टान्त द्वारा उक्त बात का समर्थन राजा के दृष्टान्त द्वारा उक्त बात का समर्थन सम्यग्दृष्टि के निःशङ्कित अङ्ग का वर्णन निःकाङ्क्षित अंग का वर्णन निर्विचिकित्सा अङ्ग का वर्णन अमूढदृष्टि का अङ्ग का वर्णन उपगूहन अङ्ग का वर्णन स्थितिकरण अङ्ग का वर्णन वात्सल्याण का वर्णन प्रभावनागुण का वर्णन बन्धाधिकार बन्ध के कारण का दृष्टान्तपूर्वक वर्णन व्यतिरेकदृष्टान्त द्वारा उक्त कथन का समर्थन मूढ-अज्ञानी तथा असंमूढ-ज्ञानी का अभिप्राय मरण का अध्यवसाय अज्ञान क्यों है? इसका उत्तर जीवन का अध्यवसाय अज्ञान क्यों है? इसका उत्तर जीवन का अध्यवसाय अज्ञान क्यों है? इसका उत्तर २०३ २३२-२३४ २०४ २३४-२३६ २०५-२०६ २३६-२३८ २०७-२०९ २३८-२४० २१० २४०-२४१ २११ २४१-२४२ २१२-२१४ २४२-२४४ २१५ २४४ २१६ २४४-२४६ २१७ २४६-२४७ २१८-२१९ २४७-२४९ २२०-२२३ २४९-२५२ २२४-२२७ २५२-२५४ २२८-२२९ २५४-२६० २३० २६०-२६१ २३१ २६१ २३२ २६२ २३३ २६२-२६३ २३४ २६३ २३५ २६३-२६४ २३६ २६४-२६५ २३७-२४१ २६७-२६९ २४२-२४६ २६९-२७२ २४७ २७२ २४८-२४९ २७२-२७३ २५० २७३-२७४ २५१-२५२ २७४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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