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________________ lviii समयसार कर्म मोक्ष के हेतु का तिरोधान करने वाला है, इसका दृष्टान्त द्वारा समर्थन १५७-१५९ १९३-१९५ शुभाशुभकर्म स्वयं बन्धरूप है १६० १९५ मिथ्यात्व आदि कर्म सम्यक्त्व आदि का आच्छादन करने वाले हैं १६१-१६३ १९५-२०० आस्रवाधिकार मिथ्यात्व, अविरमण, कषाय और योग ये कर्मों के कारण- आस्रव हैं १६४-१६५ २०१-२०२ ज्ञानी जीव के आस्रवों का अभाव है १६६ - २०३ रागादियुक्त भाव ही बन्ध का कारण है और रागादि रहित भाव अबन्ध का कारण है १६७ २०३-२०४ कर्मभाव नष्ट होने पर पुनः उदय नहीं होता, इसका दृष्टान्त द्वारा समर्थन १६८ २०४-२०६ ज्ञानी के द्रव्यास्रव का अभाव है १६९ २०६ ज्ञानी निरास्रव कैसे है, इसका उत्तर १७० २०७ ज्ञानगुण का जघन्य परिणमन बन्ध का कारण है १७१-१७२ २०७-२०९ ज्ञानी निरास्रव कैसे है, इसका दृष्टान्त द्वारा समर्थन १७३-१७६ २०९-२११ सम्यग्दृष्टि के राग, द्वेष, मोहरूप आस्रव नहीं होते १७७-१७८ २११-२१२ दृष्टान्त द्वारा उक्त कथन का समर्थन १७९-१८० २१२-२१४ संवराधिकार समस्त कर्मों के संवर का प्रथम उपाय भेदज्ञान है, उसकी प्रशंसा १८१-१८३ २१६-२१७ भेदविज्ञान से शुद्धात्मा को उपलब्धि कैसे होती है, इसका दृष्टान्त द्वारा समर्थन १८४-१८६ २१७-२१८ शुद्धात्मा की उपलब्धि से संवर किस प्रकार होता है? १८६ २१८-२१९ संवर किस प्रकार होता है? १८७-१८९ २१९-२२० संवर क्रम १९०-१९२ २२०-२२३ निर्जराधिकार सम्यग्दृष्टि की सभी प्रवृत्तियाँ निर्जरा का निमित्त हैं, इसका कथन १९३ २२४-२२५ भावनिर्जरा का स्वरूप १९४ २२५-२२६ ज्ञान की सामर्थय का वर्णन १९५ २२६ वैराग्य की सामर्थ्य का वर्णन १९६ २२६-२२७ दृष्टान्त द्वारा वैराग्य की सामर्थ्य का वर्णन १९७ २२७-२२८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003994
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2002
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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