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समयसार
(१४) चन्द्रप्रभचरित्र-द्वितीयसर्ग-वचनिका (१५) मतसमुच्चयवचनिका (१६) धन्यकुमारचरित-वचनिका
इन रचनाओं में तारकाङ्कित ग्रन्थों की प्रतियाँ स्वयं पण्डितजी के हाथ की लिखी हुई दि० जैन बड़ा मन्दिर जयपुर में विराजमान हैं। प्रस्तुत टीका के कर्ता श्री १०५ क्षुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णी
इस संस्करण में सर्व प्रथम प्रकाशित टीका के कर्ता जैनसमाज के अतिशय प्रसिद्ध एवं जन-जन के श्रद्धाभाजन पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णी महाराज हैं। आप का जन्म असाटी वैश्य नामक वैष्णव कुल में झाँसी जिला के अन्तर्गत (ललितपुर) हँसेरा ग्राम में कुवांर वदी ४ वि० सं० १९३१ को हुआ था। पिता का नाम हीरालालजी और माता का नाम उजियारी था। हँसेरा से आकर आपके पिताजी मड़ावरा (ललितपुर) में रहने लगे थे। जैनमन्दिर के समीप उनका घर था। मन्दिर में होनेवाली पद्मपुराण की वचनिका सुनकर बालक गणेशप्रसाद की जैनधर्म की
ओर रुचि जागृत हुई और वह उत्तरोत्तर इतनी वृद्धिंगत होती गई कि उसने इन्हें दिगम्बर मुद्रा में दीक्षित कराया।
आपने धर्ममाता श्री चिरोंजाबाई जी के सम्पर्क में आकर बहुत कुछ पाया। वाराणसी, खुर्जा, नदिया, मथुरा, आदि स्थानों में रहकर संस्कृतभाषा और नव्यन्याय का उच्च अध्ययन किया। गवर्नमेन्ट क्वीन्स कालेज बनारस से न्यायाचार्य परीक्षा पास की। बनारस का स्याद्वाद महाविद्यालय और सागर का गणेश दि० जैन विद्यालय स्थापित कर आपने जैन समाज में संस्कृत तथा धार्मिक विद्या का भारी प्रचार किया। ___आप पहले वर्णी, फिर क्षुल्लक और अन्तिम समय में दिगम्बर मुनि पद के धारक हुए। आपने अगणित मानवों का कल्याण किया। 'मेरी जीवनगाथा' प्रथम
और द्वितीय भाग स्वलेखनी से लिखकर समाज के लिये आपने अपने जीवन की उदात्त घटनाओं से परिचित कराया है। समयसार आप का प्रिय विषय था। वर्षों आपने इसका मनन किया था और उसके बाद यह टीका अपने लिखी थी। आप के हाथ की लिखी प्रति श्री ग० वर्णी ग्रन्थमाला वाराणसी में सुरक्षित है। पत्रलेखनकला में आप की प्रतिभा अद्भुत थी। आपने अपने भक्तजनों को सैकड़ों
श्री पं०जयचन्दजी छावड़ा का परिचय तथा उनके साहित्यिक कार्यों की सूची द्रव्यसंग्रह भाषावचनिका की डॉ०दरबारीलाल जी कोठिया द्वारा लिखित भूमिका से साभार ली गयी है।
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