________________
प्रस्तावना
आद्य हिन्दी-टीकाकार श्रीजयचन्द्र
आत्मख्याति के आधार पर समयसार की सर्वप्रथम हिन्दी टीका पं० जयचन्द्रजी ने की है। इस टीका का निर्माण इन्होंने कार्तिक वदी १० विक्रम संवत् १८६४ को किया है।
__ श्री पं० जयचन्द्रजी छावड़ा खण्डेलवाल जैन थे। जयपुर से ३० मील की दूरी पर स्थित फागई (फागी) ग्राम में रहनेवाले श्रीमोतीरामजी के पत्र थे। बाल्यावस्था से ही इनकी जैनतत्त्वचर्चा में रुचि थी। कुछ समय बाद आप फागई से जयपुर आ गये। यहाँ आने पर इन्होंने विद्वानों की अच्छी शैली देखी। उन विद्वानों के सम्पर्क से आप की स्वाध्याय सम्बन्धी अभिरुचि बढ़ती गई। इनका जन्म वि० सं० १७९५ को हुआ था और समाधिमरण १८८१-८२ के लगभग माना जाता है। आप की रचनाओं में उनका काल दिया हुआ है, जिससे जान पड़ता है कि आपने १८५९ से रचना करना शुरू किया है और यह रचनाकार्य १८७४ वि० सं० तक चलता रहा है। आप संस्कृतभाषा के अच्छे जानकार थे। न केवल धर्मविषय के आप ज्ञाता थे, किन्तु न्याय-विषय में भी अच्छे निष्णात थे। ये स्वतंत्र कविताएं भी लिखते थे। समयसार के प्रत्येक अधिकार में जो आपने सवैया आदि पद्य दिये हैं वे बहुत ही भावपूर्ण हैं। आप की साहित्यिक रचनाएँ निम्न प्रकार हैं(१) तत्वार्थसूत्रवचनिका
वि० सं० १८५९ (२) सर्वार्थसिद्धिवचनिका*
चैत्रशुक्ला ५ सं० १८६१ (३) प्रमेयरत्नमालावनिका*
आषाढ शु० ४ सं० १८६३ (४) स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षावचनिका* श्रावण कृ० ३ सं० १८६३ (५) द्रव्यसंग्रहवचनिका*
.. श्रावण कृष्णा १४ सं० १८६३ (६) समयसारवचनिका*
कार्तिक कृ० १० सं० १८६४ (७) देवागम (आप्तमीमांसा) वचनिका* चैत्र कृ० १४ वि० सं० १८६६ (८) अष्टपाहुडवचनिका*
भाद्र० शु० १२ सं० १८६७ (९) ज्ञानार्णववचनिका*
माघ कृष्ण ५ सं० १८६९ (१०) भक्तामरस्तोत्रवचनिका
कार्तिक कृ० १२ सं० १८७० (११) पद्यों की पुस्तक (मौलिक) (२४६ पद्यों का संग्रह)
आषाढ़ शु० १० सं० १८७४ (१२) सामायिकपाठवचनिका (१३) पत्रपरीक्षावचनिका
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org